हती. मुन्ना राजा।
कदंब का पेड़
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चौहान की बड़ी ही मनभावन कविता है। इसमें एक बालक ने कदंब के पेड़ को देखकर
की कल्पना की है।
अगर माँ, होता यमुना तीरे,
कन्हैया बनता धीरे-धीरे।
सुरी तुम दो पैसे वाली,
जाती यह कदंब की डाली।
हता, पर मैं चुपके-चुपके आता,
से, अम्मा, ऊँचे पर चढ़ जाता।
: मज़े से मैं बाँसुरी बजाता,
बंसी के स्वर में तुम्हें बुलाता।
3
तुम इतनी खुश हो जाती।
र, तुम बाहर तक आतीं।
रख मैं चुप हो जाता,
फिर बाँसुरी
बजाता।
सी. कहतीं नीचे आ जा,
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