History, asked by mishikagupta182, 1 month ago

हड़प्पा संस्कृति में हमें यह कैसे पता लगता है कि वहां पर अमीर गरीब रहते थे​

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Answered by rahullokhna1226
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सिंधु घाटी सभ्यता 3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिर्दाना को अबतक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया सिंधु घाटी सभ्यता का। मोहनजोदेड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘मुर्दों का टीला।

इसे ‘मुअन जो दड़ो’ भी कहा जाता है। चार्ल्स मैसन ने सर्वप्रथम हड़प्पा के विशाल टीलों की ओर ध्यान आकृष्ट किया था। मोहनजोदाड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक नगर है जो विशालकाय टीलों से पटा हुआ है। यह नगर सिंधु घाटी के प्रमुख नगर हड़प्पा के अंतरगत आता है। सिंधु नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष मिले। सर जॉन मार्शल ने सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा सभ्यता’ का नाम दिया था जिसे आद्य ऐतिहासिक युग का माना गया। इस सभ्यता की समकालीन सभ्यता मेसोपोटामिया थी।

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित ‘माण्टगोमरी जिले’ में रावी नदी के बाएं तट पर हड़प्पा नामक पुरास्थल है जबकि पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत के ‘लरकाना जिले’ में सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर मोहनजोदड़ो नामक नगर करीब 5 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदेड़ो को हड़प्पा की सभ्यता के अंतरर्गत एक नगर माना जाता है। इस समूचे क्षेत्र को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है। हड़प्पा (पाकिस्तान), मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान), चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा, सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा, अलीमुराद (सिन्ध प्रांत), कच्छ (गुजरात), रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि क्षेत्रों में सिन्धु घाटी सभ्यता के कई प्राचीन नगरों को ढूंढ निकाला गया है। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1,000 स्थानों का पता चलाहै। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है।

हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो सरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था। इस दौरान हड़प्पा से कई ऐसी ही चीजें मिली हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है। पुरोहित की एक मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग।

1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विकविभाग के एमएस वत्स को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है। शिवजी को पशुपतिनाथ भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4616 वर्ष पूर्व इस नगर की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण किया गया है लगभग 2700 ई. पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है। हड़प्पा के इस नगर मोहनजोदड़ों को ‘सिंध का बांग’ कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के निर्माता द्रविड़ लोग थे। मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े के उपयोग के प्रमाण मिले हैं इसका मतलब वे कपास की खेती के बारे में जानते थे।

इतिहाकारों के अनुसार सबसे पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को ही दिया जाता है। हड़प्पा सभ्यता के मोहजोदड़ो से कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें की वस्तुएं मिले है। यहां के लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग करते थे इसका मतलब यह कि वे लोहे के बारे में भी जानते थे। यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर के उत्खनन से तांबे की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र की भाषा की लिपि चित्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं। हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन पर सामान्यतः लाल रंग का उपयोग हुआ है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे

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