History, asked by chetlaldhngmailcom, 10 months ago

हड़प्पा वासियों के धर्म और धार्मिक स्वरूप की चर्चा कीजिए 500 shabdo me​

Answers

Answered by shigrakumar99
1

Answer

धर्म

सैन्धव सभ्यता के धार्मिक जीवन का जहाँ तक प्रश्न है, इनके विषय में किसी साहित्य का न मिलना, स्मारकों के अभाव एवं लिपि न पढ़े जाने के कारण कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाती। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर योगी की आकृति (संभवत: पशुपति शिव) मिली है। लिंगीय प्रस्तर (शिव लिंग से मिलते-जुलते), मातृ देवी की मृण्मूर्ति जिससे उर्वरता की उपासना तथा मातृदेवी की पूजा के संकेत मिलते हैं। हवन कुडों में होने वाले हवनों (जैसे कालीबंगा) इत्यादि के आधार पर सैन्धव सभ्यता के धार्मिक जीवन के विषय में अनुमान लगाया जाता है। सैन्धव सभ्यता में वृक्ष पूजा (पीपल), पशु पूजा (कुबड वाला पशु) एवं जल पूजां के भी प्रमाण मिले हैं। सिन्धु सभ्यता में मंदिरों का कोई अवशेष नहीं मिला है।

मातृदेवी की पूजा- देवियों की पूजा सौम्य एवं रौद्र दोनों रूपों में होती थी। बलूचिस्तान स्थित कुल्ली नामक स्थान में नारी मृण्मूर्तियों में सौम्य रूप दिखता है, लेकिन बलूचिस्तान की झौब संस्कृति से प्राप्त मूर्तियाँ रौद्र रूप में दिखती हैं। जिन मृण्मूर्तियों में गर्भणी नारी का रूपाकन है, उन्हें पुत्र प्राप्ति हेतु चढ़ाई गई भेंट मानी जा सकती है। नारी की पूजा कुमारी के रूप में की जाती थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मूर्ति में एक देवी के सिर पर पक्षी पंख फैलाये बैठा है। हड़प्पा से प्राप्त एक मुहर के दाहिने भाग में एक स्त्री सिर के बल खड़ी हैं।

पृथ्वी की पूजा- एक स्त्री के गर्भ में एक पौधा प्रस्फुटित होता दिखाया गया है।

शिव की पूजा- मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर में योगी की मुद्रा में एक व्यक्ति का चित्र है। इसके तीन मुख और दो सींग हैं। उसके बांयी ओर बाघ और हाथी तथा दांयी ओर भैंस और गैंडा हैं। आसन के नीचे दो हिरण बैठे हुए हैं। मार्शल का मानना है कि वे पशुपति शिव हैं। सिंधु सभ्यता में शिव की पूजा किरात (शिकारी) रूप में, नागधारी रूप में, धनुर्धर रूप में और नर्तक रूप में होती थी। एक जगह पर एक व्यक्ति को दो बाघों से लड़ते हुए दिखाया गया है, संभवत: वह मेसोपोटामिया के योद्धा गिलगमेश की आकृति है।

प्रजनन शक्ति की पूजा- लिंग पूजा का सर्वाधिक प्राचीन प्रमाण हड़प्पा से मिला है।

पशु पूजा- मुख्य रूप से कुबड वाले सांड की पूजा होती थी। पशु पूजा वास्तविक एवं काल्पनिक दोनों रूपों में होती थी।

वृक्ष पूजा- संभवत: पीपल, नीम और बबूल की पूजा होती थी एवं मुख्य रूप में पीपल और बबूल की पूजा होती थी।

नाग पूजा- कुछ मृदभांडों पर नाग की आकृति मिली हैं। अत: ऐसा अनुमान किया जाता है कि सिंधु सभ्यता में नाग की भी पूजा की जाती थी।

अग्नि पूजा- कालीबंगा, लोथल, बनवाली एंव राखीगढ़ी के उत्खननों से हमें अनेक अग्निवेदियाँ मिली हैं एवं कुछ स्थानों पर उनके साथ ऐसे प्रमाण भी मिले हैं, जिनमें उनके धार्मिक प्रयोजनों के लिए अग्नि के प्रयुक्त होने की संभावना प्रतीत होती है।

सार्वजनिक स्नान एवं जल पूजा- मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार का अनुष्ठानिक महत्व था। वैदिक काल में भी नदी की पूजा होती थी और परवर्ती काल में सिंधु क्षेत्र में जल की पूजा होती थी। इस पूजा से जुड़े हुए लोग दरियापंथी कहलाते थे।

स्वास्तिक एवं ऋग स्तंभ की पूजा- स्वास्तिक एवं ऋग स्तंभ की पूजा भी की जाती थी।

प्रेतवाद- सिंधु सभ्यता के धर्म में हमें प्रेतवाद का भाव मिलता है। प्रेतवाद वह धार्मिक अवधारणा है जिसमें वृक्षों, पत्थरों आदि की उपासना इस भय से की जाती है कि इनमें बुरी आत्मा निवास करती है।

इसके अतिरिक्त सिन्धु अतिरिक्त सिन्धु सभ्यता की धार्मिक भावना में हमें भक्ति धर्म और पुनर्जन्मवाद के बीज भी मिलते हैं

Similar questions