हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की दो राचनाएं भाव पक्ष कला पक्ष साहित्य में स्थान निम्नलिखित बिंदुओं पर लिखिए
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सामान्य परिचय -
हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट साहित्यकार, प्रसिध्द आलोचक, निबंधकार एवंं उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म १९ अगस्त १९०७ में उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के छपरा ग्राम में हुआ था । इनका निधन १९ मई १९७९ ई. को हुआ ।
रचनाएँ
1.सूर- साहित्य (आलोचना साहित्य)
2. बाणभट्ट की आत्म कथा ( उपन्यास)
3. पुनर्नवा ( उपन्यास)
भाषा- शैली
भाषा- आचार्य द्विवेदी जी की भाषा उनकी रचना के अनुरूप है। उनकी भाषा के तीन रूप हैं- तत्सम प्रधान, सरल तद्भव प्रधान एवं उर्दू अंग्रेजी शब्द युक्त।
आपने भाषा को प्रवाह पूर्ण एवं व्यवहारिक बनाने के लिए लोकोक्तियों एवं मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। प्रांजलता, भाव प्रवणता,सुबोधता , अलकरिता,सजीवता और चित्रोपमता आपकी भाषा की विशेषता है।
शैली-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी विविध शैलियों के सर्जक हैं। उनकी शैली चुस्त एवं गठी हुई है। द्विवेदी जी की रचनाओं में हमें निम्नांकित शैलियाँ दृष्टोगोचर होती है-
1. व्यास शैली- उनके विचारात्मक तथा आलोचनात्मक रचनाओं में व्यास शैली का प्रयोग हुआ है।
2. गवेषणात्मक शैली- हिंदी साहित्य का आदिकाल, नाथ संप्रदाय जैसे शोध सबंधी साहित्य में इस शैली की छटा दृष्टव्य है।
3. विवेचनात्मक शैली- विचार वितर्क जैसे निबंधों में इस शैली का प्रयोग दिखाई पड़ता है।
4.आलोचनात्मक शैली- साहित्य का धर्म जैसे आलोचनात्मक साहित्य में इस शैली का प्रयोग हुआ है
5. भावात्मक शैली - ललित निबंधों एवं भाव प्रधान निबंधों में इस शैली को देखा जा सकता है।
6. व्यंगात्मक शैली- द्विवेदी जी की रचनाओं में व्यंगात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आधुनिक युग के अत्यंत सम्मानित साहित्यकार हैं। ललित निबन्ध सृजन की नूतन परंपरा का सूत्रपात करने का श्रेय आपको दिया जाता है। द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के अमर रचनाकार हैं।