Hello friends !!
आप कितने लोग अपने मा से प्यार करते है ,अगर करते है , तो दिल से ,
अपने मां के बारे में संक्षिप्त रूप से वर्णन करे !
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आपका प्रिए दोस्त राजुकुमार ☺
Answers
❝ माँग लूँ यह मन्नत की फिर यही जहाँ मिले,
फिर यही गोद मिले फिर यही माँ मिले। ❞
❝ कैसे पहचानूंँगा कैसे ? तुझे देखा ही नहीं,
ढूंढा करता हूँ तुम्हें अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं मेरी आँखे मेरी माँ सी हैं
जाने किस जल्दी में थी, जन्म दिया और दौङ गयी
क्या खुदा देख लिया था जो मुझे छोड़ गयी,
तुझे पहचानूंँगा कैसे ? तुझे देखा ही नहीं।। ❞
माँ की जगह इस दुनिया में कोई नहीं ले सकता। माँ का प्यार सर्वोपरि है। एक माँ ही है जो अपनी खुशी से पहले अपने बच्चों की खुशी को देखती है, और अपने बच्चों की खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
माँ के त्याग और बलिदान की कीमत हम लोग कभी नहीं चुका सकते। उनका प्यार, उनका दुलार, उनकी डाँट, सबमे हमारी ही भलाई छुपी होती है।
फिर भी जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, वो उन सभी प्यार, विश्वास और त्याग को भूल जाते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि हमारे माँ - पिता ने हमारे लिए कितना कुछ सहा है, और हमारी सफलता के लिए हमे इस काबिल बनाया है कि आज हम उनसे सम्मान से बात कर पा रहे हैं।
माँ चाहे कितनी भी उम्रदार क्यूँ ना हो जाए, पर उम्र के बढ़ने के साथ - साथ माँ का प्यार भी और मीठा होता जाता है।
माँ का हमारे जीवन में होना, एक अनमोल और अनोखी रचना है। जिनकी माँ नहीं होती, उनके दुख को शायद ही कोई समझ सके।
माँ - पिता हमसे कुछ ज्यादा की अपेक्षा नहीं रखते, वो तो बस ये चाहते हैं कि उनके प्यार का कर्ज़ जो हमने अपने बचपन में उधार लिया था, वो उन्हे उनके बुढ़ापे में उन्हे मिले।
माँ को तो बदले में कुछ नहीं चाहिए वो तो बस हमे ख़ुश और समृद्ध होते देखना चाहती है।
मेरी माँ की भी बहुत खास जगह है मेरी जिन्दगी में। लेकिन आज तक कभी भी मैंने कोई ऎसा काम नहीं किया जिससे मैं उनके लिए अपना प्यार दिखा पाऊँ। हमेशा मैंने उनसे अच्छे से बात नहीं की। शायद मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। लेकिन उन्हे शायद नहीं पता कि उनकी मेरे जीवन में क्या अहमियत है।
जब भी मैं कही जाऊँ, मुझे बस मेरी माँ की ही फिक्र रहती है, खासकर तब जब हमारे घर में ही परिस्थितियां विपरीत हो। पता नहीं कब आएगी मुझमे अक्ल।
शायद आप लोगों के जीवन में भी माँ का बहुत कीमती स्थान होगा।
❝ इतनी औकात नहीं मेरी की, माँ के बारे में कुछ लिख पाऊँगा,
बनाया है तूने मुझे, मैं कायनात से कयामत तक तेरी ही लिखावट कहलाउँगा।। ❞
मां शब्द जिस से हम सब बहुत ही अछि तरह से परिचित हैं. इसकी गहराई, इसकी महत्वता, इसकी पवित्रता को सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. यह वो रिश्ता है , जो एक इंसान को उसके अस्तित्व के होने का एहसास दिलाता है. अगर मां नही होती तो , बचा इस दुनिया में आयेगा कैसे.
जब वो इस दुनिया में आयेगा तभी तो बाकी सारे रिश्ते नातों को प्रसिद्ध तरीके से पा सकेगा. लेकिन यहाँ में जिस रिश्ते की बात कर रही हूँ , वो माँ नही दादी माँ है. जिस तरह माँ एक शीतल छाया का एहसास दिलाती है , उसी तरह दादी माँ एक मीठी सी प्यार भरी मिठास है , जो जिस बच्चे को मिलती है , वही उसकी अहमियत को समझ सकता है.
दादी जिसे हर चीज का तजुर्बा दुगना होता है , क्यूंकि वो पापा की माँ होती है , जिसमे ममता के साथ लाड़ प्यार भरा रहता है.वो हर बात पर स्टिक नही होती है मगर माँ के प्यार में ममता ओर अनुशासन दोनो होते हैं. दादी एक बूढ़े बरगद की तरह होती है , जो पूरे घर की जिम्मेदारी संभालती है.
मुझे जब मेरी दादी की छवि याद अाती है , तो आँखों के सामने एक तस्वीर सी घूम जाती है. माथे पर चौड़ी सी लाल बिंदी के साथ , बड़े ही सलीके से बांधी हुई सूती साड़ी जब तक मेरे दादाजी थे तब तक मैने कभी भी चाहे वो कोई भी समय होता सुबह दुपहर शाम , उनका माथा सुना नही देखा. वो एक मजबूत नीम की तरह थी. बच्चों को कहानी सुनाते सुनाते , इतने अच्छे संस्कार डाल देना एक दादी ही कर सकती है. मुझे याद है रात के समय जब भी मेरी नींद खुलती और मुझे डर का एहसास होता,में उन्हे धीरे से पूछते अम्माजी सो गाई क्या और उनका जवाब होता नही. मैने कभी उनके मुख से यह नही सुना की हाँ , और वो रात जब घर में रात में लाइट नही होती थी और तब वो पंखा चलकर मुझे सुलाती थीे और मेैे रात को किसी भी पहर उठती तो देखती कि वो अभी भी पंखा चला रही हैं और फिर वही सुबह वो 4 बजे उठ जाती.
मेरी दादी की छवि एक ऐसी छवि थी जो अनुशासन , नेत्रत्व , ओर ग्यान से परिपूर्ण थी. जहां उनके बनाये नियम ओर ममता की बात आती थी , हमेश नियम ही जीत ते थे. मुझे उनकी यह बात हमेशा लुभाती, की सामने वाला चाहे जित्न् अभी बड़ा आदमी हो , है तो वो हमारी तरह ही इंसान , इसलिये किसी से भी सही बात करने से झिझुकना नही चाहिये.
वो अपने जीवन में पाँचवी पास थी , लेकिन धर्म के ग्यान से लेकर तो विग्यान के ग्यान तक उन्हे पूरा ग्यान था. वो रूडी वादी बिल्कुल नही थी , मगर उनमे अहंकार था. में कहाँ अपनी बात लेकर बैठ गयी , इन सब बातों को करने का मेरा मकसद एक ही था, जहां मानुषय के जीवन में माँ बाप का स्थान सर्वोपरि होता है ,उसी के साथ सॅत दादा दादी के अहमियत भी कम नही होती है.
हम जिसे बचपन कहते हैं , वो माँ के आंचल के साथ साथ दादी की गोद के बिना पूर्ण नही कहलाता है. लेकिन आज परिवार एकांकी रहने लगे हैं. उन्हे किसी की भी दखल अंदाज़ी पसंद नही है , इसलिये इन सब बातों को समझ पायें , यह भी ज़िंदगी के सफर का एक हिस्सा था .
राम राम