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प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्र’ के तृतीय खण्ड से संकलित है। यह खण्ड ‘काकोलूकीय’ नाम से जाना जाता है। पञ्चतन्त्र के रचयिता . का नाम ‘विष्णुशर्मा’ है। इस ग्रन्थ की रचना विष्णुशर्मा ने राजा अमरशक्ति के मूर्ख पुत्रों को नीतिशास्त्र की शिक्षा देने के लिए की थी। इस ग्रन्थ में पाँच खण्ड हैं, जिन्हें ‘तन्त्र’ कहते हैं। पञ्चतन्त्र एक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ है। इसमें अनेक कथाएँ ई हैं। बीच-बीच में शिक्षाप्रद श्लोक भी दिए गए हैं। कथाओं के पात्र प्रायः पशु-पक्षी हैं। पाठ का सार इस प्रकार है किसी वन में खरनखर नामक सिंह रहता था। वह भोजन की खोज में घूम रहा था। सायंकाल एक विशाल गुफा को देख कर उसने सोचा-‘इस गुफा में रात में अवश्य कोई प्राणी आता है। अतः यहाँ छिप कर बैठता हूँ।’इसी बीच उस गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नामक गीदड़ वहाँ आया और सिंह के पैरों के निशान देखकर बाहर खड़ा हो गया। गीदड़ बुद्धिपूर्वक विचार करके गुफा से कहने लगा-‘अरे गुफा! आज तुम मुझे क्यों नहीं बुला रही हो?’यह सुनकर (मूर्ख) सिंह ने सोचा कि यह गुफा इस गीदड़ को प्रतिदिन बुलाती होगी। आज मेरे भय से नहीं बुला रही है। यह सोचकर सिंह ने उसे अन्दर आने के लिए कहा। सिंह की आवाज सुनकर गीदड़ ने कहा- मैंने आज तक गुफा की आवाज नहीं सुनी।’ ऐसा कह कर वह भाग गया।
Answer:
(1)दूरस्थ -------------------------------इति।
अर्थ। दूर खड़े होकर आवाज करना शुरू कर दिया है - हे बिल! से बिल! क्या याद नहीं है जो मैंने तुम्हारे साथ समझौता किया है कि जब मैं बाहर से वापस आऊंगा तब तुम मुझे बुलाओगी यदि तुम मुझे नहीं बुलाती हो तो मैं दूसरे बिल में चला जाऊंगा।
(2)अथ --------------------------भवेत्।
अर्थ। इसके बाद यह सुनकर शेर ने सोचा :-निश्चय ही यह गुफा अपने मालिक का सदा आवाहन करती है। परंतु आज मेरे डर से कुछ नहीं बोल रही है अथवा ठीक ही कहते हैं भय से डरे हुए मन वाले लोग के हाथ और पैर से होने वाली क्रियाएं ठीक तरह से नहीं होती और वाणीभी ठीक काम नहीं करती है।
Explanation:
You must have understood the friend I hopLove you friend