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एक फूल की चाह सारांश- Ek Phool Ki Chah
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‘एक फूल की चाह’ सियारामशरण गुप्त जी की एक कथात्मक कविता है। इस कविता में कवि ने तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआ-छूत की भावना के बारे में बताया है। कवि की पुत्री रमा का देहांत असमय ही हो गया और इस घटना ने उन्हें बहुत हद तक दु:ख वेदना और करुणा का कवि बना दिया। इस कविता में हम उनकी पुत्री के प्रति उनके प्रेम को भी देख सकते हैं।
समाज में व्याप्त बुराइयों को जनमानस तक लाने के लिए, उन्होनें अपनी कविताओं को छंदों और अलंकारों से सजाने के बजाय, सरल भाषा का उपयोग किया। प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि किस प्रकार मौत के बिछौने में लेटी हुई छोटी-सी लड़की की आख़िरी इच्छा तक उसका पिता पूरी नहीं कर पाता। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि समाज उसे यह करने की आज्ञा नहीं देता और उल्टा उसे दंड भोगना पड़ता है। यहाँ तक कि वह अपनी बेटी के आख़िरी वक्त में उसके साथ भी नहीं रह पाता और न ही उसे अपनी गोद में उठा पाता है। यह सबकुछ समाज में व्याप्त त्रुटियों के कारण होता है।