Hindi, asked by pd3151647, 1 month ago

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राग देवगंधार

मेरो मन अनत कहां सुख पावै।

जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥

कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।

परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥

जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।

सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥

भावार्थ :- यहां भक्त की भगवान् के प्रति अनन्यता की ऊंची अवस्था दिखाई गई है। जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है। उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्माही है , अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति मिलने की नहीं। प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है। कमल-रसास्वादी भ्रमर भला करील का कड़वा फल चखेगा ?कामधेनु छोड़कर बकरी को कौन मूर्ख दुहेगा ?

शब्दार्थ :- अनत =अन्यत्र। सचु =सुख, शान्ति। कमलनैन = श्रीकृष्ण। दुर्मति= मूर्ख खनावै = खोदता है। करील -फल = टेंट। छेरी =बकरी।

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