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पुस्तकें ज्ञान का भंडार होते हैं और इनका साथ आपे जीवन में कई परिवर्तन ला सकता है। बच्चों के लिये उनसे संबंधित, बड़ो के लिये उनसे संबंधित। एक पुस्तक कभी आपको धोका नहीं देता और सदैव आपके ज्ञान को बढाता ही है।
आप इसमें रोचक कहानियां, देश दुनिया में होने वाली गतिविधियाँ, कुछ नया सीखने का तरीका, आदि आसानी से सीख सकते हैं। पुस्तक पढ़ना एक अच्छी आदत है और हम सबको इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए।
हमारे इतिहास में कई महापुरुष रहे हैं और उनके वक्तव्य और ज्ञान भरी बातों को हम आसानी से पुस्तकों में पढ़ सकते हैं। जैसे की गांधीजी, जो भले आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी विचार धारा अभी भी जिन्दा है।
पुस्तकों की उपयोगिता हमारे जीवन में बहुत अधिक है, वे हर क्षेत्र में हमरा मार्गदर्शन करती हैं और बदले में हमसे कुछ लेती भी नहीं है। तो क्यों न इन्हें ही अपना साथी बना लिया जाये। पहले के ज़माने में पुस्तक नहीं हुआ करते थे और गुरूजी बच्चों को सब कंठस्थ कराया करते थे। परंतु पुस्तक के आविष्कार के बाद लोग पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान का हस्तांतरण एक युग से दुसरे युग में करने लगे। पुस्तकों के आविष्कार के कारण ही हम अपने इतिहास को जान पाए। शायद शब्द कम पड़ जाएँ लेकिन उनकी उपयोगिता कम नही होगी।
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मै घर के बगीचे में बैठा हुआ था | शाम का समय था | आकाश पर काले काले बादल छाए हुए थे | उमड़ते घुमड़ते बादलो के बीच से लम्बी कतार में पक्षी उड़ रहे थे | आकाश में सजी ये वन्दनवार देखकर कवि कालिदास के मेघदूत की वे पंक्तिया स्मरण हो आयी , जहां उन्होंने इन बादलो एवं पक्षियों के रूप पर मुग्ध होकर अनेक श्लोक रच डाले थे | तभी मेरे मन में विचार आया “यदि मैं पक्षी होता” |
मै घर के बगीचे में बैठा हुआ था | शाम का समय था | आकाश पर काले काले बादल छाए हुए थे | उमड़ते घुमड़ते बादलो के बीच से लम्बी कतार में पक्षी उड़ रहे थे | आकाश में सजी ये वन्दनवार देखकर कवि कालिदास के मेघदूत की वे पंक्तिया स्मरण हो आयी , जहां उन्होंने इन बादलो एवं पक्षियों के रूप पर मुग्ध होकर अनेक श्लोक रच डाले थे | तभी मेरे मन में विचार आया “यदि मैं पक्षी होता” |यदि मै पक्षी होता तो स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन यापन करता | धरती का हर कोना , आकाश की समस्त दूरियाँ और क्षितिज सब मेरे होते | मै सुबह से शाम यत्र तत्र भ्रमण करता | हरे-भरे पहाड़ो पर यात्रा करता ,ऊँचे ऊँचे वृक्षों पर अपने घोंसले बनाता , बहते हुए झरनों , कल-कल करती नदियों का जल पीता | प्रकृति की उस सुन्दरता का आनन्द लेता जिसका दर्शन भी मनुष्य नही कर पाया है या जहां उसका हस्तक्षेप नही हुआ है |
यदि मैं पक्षी होता तो सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाता | कभी कालिंदी के तट पर वास करता , कभी समुद्रतटीय प्रदेशो में चला जाता | मै भी प्रवासी पक्षियों की भांति हजारो किलोमीटर की यात्रा करता और प्रकृति के विभिन्न नजारों का आनन्द लेता | सुबह-सुबह उठकर सब आलसी बच्चो को जगाता | पक्षियों का प्रात:कालीन कलरव मुझे बहुत भाता है | यदि मै पक्षी होता तो इस कलरव की वृद्धि में सतत जुटा रहता |
यदि मैं पक्षी होता तो प्रकृति का मित्र बना रहता शत्रु नही | मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन प्रकृति पर आश्रित है किन्तु वह अपनी आश्रयदाता प्रकृति को सदा हानि पहुचाने की दिशा में प्रयत्नशील है | पक्षी सदा प्रकृति से मित्र ही तरह आचरण करते है | कुछ पक्षी तो मरे हुए पशुओ को खाकर वातावरण को शुद्ध रखते है | कुछ पक्षी तरह तरह के कीड़े-मकोड़े खाकर वृक्षों , पौधों तथा फसलो की सुरक्षा करते है | मै भी अपना जीवन इसी प्रकार परमार्थ में व्यतीत करता |
यदि मैं पक्षी होता तो प्रकृति का मित्र बना रहता शत्रु नही | मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन प्रकृति पर आश्रित है किन्तु वह अपनी आश्रयदाता प्रकृति को सदा हानि पहुचाने की दिशा में प्रयत्नशील है | पक्षी सदा प्रकृति से मित्र ही तरह आचरण करते है | कुछ पक्षी तो मरे हुए पशुओ को खाकर वातावरण को शुद्ध रखते है | कुछ पक्षी तरह तरह के कीड़े-मकोड़े खाकर वृक्षों , पौधों तथा फसलो की सुरक्षा करते है | मै भी अपना जीवन इसी प्रकार परमार्थ में व्यतीत करता |यदि मै पक्षी होता तो मनुष्य की तरह घरो , दफ्तरों और स्कुलो में व्यस्त जीवन नही बिताता , जहा लोगो को अपने विषय में सोचने की फुर्सत नही जहां व्यक्ति प्रकृति की रमणीयता का आनन्द नही ले सकता | यदि मै पक्षी होता तो मेरा जन्म प्रकृति की गोद में होता , कोमल किसलय मुझे स्नेहपूर्वक चूम लेते , डालियों की निर्मल छाया में सदा मै डोलता | ऐसे सुरम्य जीवन की कल्पना मात्र ही मुझे रोमाचित कर देती है | न कोई चिंता , न द्वेष , बस प्रकृति और मै | काश मै पक्षी होता और स्वछन्द , उन्मुक्त , बंधनरहित , आंकाषारहित जीवन यापन करता |