Hindi, asked by sharmadesraj1223, 8 months ago

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Answered by aryankr026
3

Answer:

what will the winners get

Answered by kr92umesh
1

Answer:

समाज का प्रकृति एजेण्डा जगाती एक पुस्तक

'समाज, प्रकृति और विज्ञान' - यह पुस्तक एक ओर भारतीय खेती-किसानी और पर्यावरण के सम्बन्ध में कई कालखण्डों की जानकारी से परिपूर्ण है, तो दूसरी ओर अपेक्षाओं से भरी है।

''हमारी सोच की दरिद्रता यह है कि हम सब कामों के लिये सरकार का मुँह जोहते हैं। सबकी जवाबदारी सरकार की ही मानते हैं। यह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में लोक ही असली नियामक है। यह प्रकृति भी समाज की साझा सम्पदा है; बल्कि थाती है, अमानत है उन पीढ़ियों की, जिन्हें अभी पैदा होना है। समाज का ही इन पर अधिकार है और इसलिये समाज की ही जवाबदारी इन्हें बचाने की है।''

''जागो, उठो और अपनी धरती को बचाने में जुट जाओ, जिससे यह आने वाली पीढ़ियों के रहने लायक बनी रहे।''

पुस्तक 'समाज, प्रकृति औऱ विज्ञान'

उक्त कथनों के साथ प्रकाशक परिवार ने पुस्तक प्रकाशन का अपना मंतव्य और अपेक्षा...दोनों ही शुरू में ही स्पष्ट कर दी है। सराहनीय है कि पुस्तक का कोई मूल्य नहीं रखकर प्रकाशक ने मंतव्य पूर्ति में पहले खुद योगदान दिया है और इसके बाद दूसरों से अपेक्षा की है। प्रकाशक ने पाठकों से निवेदन किया है कि वे पुस्तक में दर्ज विचारों की उजास से प्रकाशमान होने का अवसर औरों को भी देंगे।

दर्ज निवेदन इस प्रकार है : ''पाठकों से आग्रह है कि इस पुस्तक को पढ़ने के उपरान्त किसी मित्र को पढ़ने के लिये दे दें। फिर वे भी ऐसा ही करें। इस प्रकार पठन-पाठन की श्रृंखला बनाएँ। विचारों से ज्योति से ज्योति जलाएँ। इसी से कर्म की दीपमाला भी ज्योतिर्मय होगी।''

अच्छा है कि किसी लंबी-चौड़ी भूमिका अथवा माननीयों के शुभकामना संदेशों में पन्ने बर्बाद करने की बजाय, पुस्तक सीधे एक पेजी ‘अपनी बात' से शुरू होती है। पुस्तक में कुल पाँच लेख हैं। 'आओ, बनाएँ पानीदार समाज' - प्रथम लेख है और 'अस्तित्व के आधार वन' - अंतिम लेख। 'रसायनों से मारी, खेती हमारी', 'बिन पानी सब सून' और 'धरती का बुखार' - शाीर्षकयुक्त तीन अन्य लेख काफी ज्ञानवर्धक और बुनियादी समझ से ओत-प्रोत हैं, किंतु अत्यंत लंबे होने के कारण पाठकों के धीरज की परीक्षा लेने वाले भी हैं। उपशीर्षक देकर पठन-पाठन को थोड़ा आसान की कोशिश अवश्य की गई है; लेकिन बेहतर होता कि इन्हें कई उपलेखों में बाँटकर प्रस्तुत किया जाता। बिन पानी सब सून - लेख में पानीदार नायकों की प्रेरक कथाएँ हैं। उनकी तथा उनके काम की तस्वीरें शामिल की जातीं, तो इस लेख का दृष्टि प्रभाव कुछ और बढ़ जाता। इस पुस्तक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इस तथ्य को रेखांकित करने में पूरी तरह सफल है कि जब समाज का प्रकृति एजेण्डा प्रकृति के अनुकूल था, प्रकृति मानव के अनुकूल बनी रही; ज्यों-ज्यों समाज का प्रकृति एजेण्डा प्रकृति के प्रतिकूल होता गया, प्रकृति मानव के प्रतिकूल होती गई।

पहले लेख के लेखक - श्री विजयदत्त श्रीधर, सप्रे संग्रहालय के संस्थापक तथा काफी सम्मानित शोधकर्ता व लेखक हैं। लेख से लगता है कि अनमोल प्राकृतिक संपदा की हो रही बर्बादी के प्रति राज, समाज, संत और विज्ञानियों की बेरुखी और कंपनियों के स्वार्थपरक रवैये को लेकर श्री धर बेहद गुस्सा हैं।

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