Hindi, asked by Sweety1430, 11 months ago

Hey guys!!
I wanna essay on hindi ka badhta Prabhav in hindi itself
Com'on ....hurry up !!! ;)

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Answered by Arjun2424
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दुनिया भर में बोलचाल के लिए कई भाषा का प्रयोग किया जाता है लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसी भाषा है जो लगातार अपने अस्तित्व को कायम रखे हुए है।उन्हीं में से एक भाषा है हिंदी ।

दुनिया भर में बोलचाल के लिए कई भाषा का प्रयोग किया जाता है लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसी भाषा है जो लगातार अपने अस्तित्व को कायम रखे हुए है।उन्हीं में से एक भाषा है हिंदी ।वैसे तो विश्व में सबसे ज्यादा अंग्रेज़ी व चीनी भाषा का प्रयोग किया जाता है। लेकिन जल्द ही हिंदी भी इन्हीं भाषाओं की बराबरी कर लेगी।

विगत दो दशकों में जिस तेजी से हिंदी का अंतर्राष्ट्रीयविकास हुआ है और उसके प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है यह उसकी लोकप्रियता को रेखांकित करता है। शायद ही विश्व में किसी भाषा का हिंदी के तर्ज पर इस तरह फैलाव हुआ हो। इसकी क्या वजहें हैं यह विमर्ष और षोध का विशय है।

लेकिन हिंदी को नया मुकाम देने का कार्य कर रही संस्थाएं, सरकारी मशीनरी और छोटे-बड़े समूह उसका श्रेय लेने की कोशिश जरुर कर रही हैं। यह गलत भी नहीं है। यूजर्स की लिहाज से देखें तो 1952 में हिंदी विश्व में पांचवे स्थान पर थी। 1980 के दशक में वह चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर आ गयी। आज उसकी लोकप्रियता लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है और वह चीनी भाषा के बाद दूसरे स्थान पर आ गयी है। भविष्य भी हिंदी का ही है। कल वह चीनी भाषा को पछाड़ नंबर एक होने का गौरव हासिल कर ले तो आष्चर्य की बात नहीं होगी। निश्चित ही इसके लिए वे सभी संस्थाएं और समूह साधुवाद के पात्र हैं जो हिंदी के विकास व प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बाजार ने हिंदी की स्वीकार्यता को नर्इ उंचार्इ दी है और विश्व को आकर्षित किया है। यह सार्वभौमिक सच है कि जो भाषाएं रोजगार और संवादपरक नहीं बन पाती उनका अस्तित्व खत्म हो जाता है।

आज हिंदी भाषा भी उसी चरित्र को अपनाती दिख रही है। वह विश्वसंवाद का एक सशक्त भाषा के तौर पर उभर रही है और विश्व समुदाय उसका स्वागत कर रहा है। कभी भारतीय ग्रंथों विशेष रुप से संस्कृत भाषा की गंभीरता और उसकी उपादेयता और संस्कृत कवियों व साहित्कारों की साहितियक रचना का मीमांसा करने वाला यूरोपिय देष जर्मनी संस्कृत भाषा को लेकर आत्ममुग्ध हुआ करता था। वेदों, पुराणों और उपनिषदों को जर्मन भाषा में अनुदित कर साहित्य के प्रति अपने अनुराग को संदर्भित करता था। आज वह संस्कृत की तरह हिंदी को भी उतना ही महत्ता देते देखा जा रहा है। जर्मन के लोग हिंदी को एशियार्इ आबादी के एक बड़े तबके से संपर्क साधने का सबसे दमदार हथियार मानने लगे हैं। जर्मनी के हार्इडेलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बान विश्वविधालय के अलावा दुनिया के कर्इ शिक्षण संस्थाओं में अब हिंदी भाषा पाठयक्रम में शामिल कर ली गर्इ हैं। छात्र समुदाय इस भाषा में रोजगार की व्यापक संभावनाएं भी तलाशने लगा है। एक आंकडें के मुताबिक दुनिया भर के 150 विश्वविधालयों और कर्इ छोटे-बड़े षिक्षण संस्थाओं में रिसर्च स्तर तक अध्ययन-अध्यापन की पूरी व्यवस्था की गयी है। यूरोप से ही तकरीबन दो दर्जन पत्र-पत्रिकाएं हिंदी में प्रकाषित होती हैं। सुखद यह है कि पाठकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक आज विश्व में आधा अरब लोग हिंदी बोलते है और तकरीबन एक अरब लोग हिंदी बखूबी समझते हैं। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार ऐसा कोर्इ क्षेत्र नहीं बचा है जहां हिंदी अपना पांव पसारती न दिख रही हो। वैष्वीकरण के माहौल में अब हिंदी विदेशी कंपनियों के लिए भी लाभ का एक आकर्षक भाषा व जरिया बन गयी है।

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अब बहुत चिंतित होने की जरुरत नहीं है। हिंदी अपने दायरे से बाहर निकल विश्वजगत को अचंभित और प्रभावित कर रही है। एक भाषा के तौर पर वह अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ दी है।

Answered by temporarygirl
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Hii

Here is your answer -

हर देश की अपनी भाषा होती है। भाषा के माध्यम से ही हम एक-दूसरे की बातों और विचारों को समझ और समझा पाते हैं। भारत देश में वैसे तो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग भाषायें बोली जाती हैं पर ”हिन्दी“ हमारे देश की राष्ट्रभाषा है। 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान बना तो हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। लेकिन राष्ट्र भाषा का दर्जा मिलने के बाद भी इसको वह सम्मान नहीं मिला जो इसे मिलना चाहिये था। हिन्दी भाषा के प्रयोग में हमें कमतर महसूस न करके इसका गर्व के साथ प्रयोग करना चाहिये एवं आने वाली पीढ़ी को भी हिंदी को अपनाने के लिए जागरुक करना चाहिये।

भारत देश विभिन्न जाति, धर्मों एवं संस्कृति का देश है जहाँ कई भाषाओं और बोलियों का प्रयोग होता है। ऐसे में यदि किसी देश की अपनी एक राष्ट्रभाषा न हो तो देश में एकता की कल्पना करना असम्भव है। इसलिए भारतीय संविधान में ”हिन्दी“ को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है जिससे इस राष्ट्रभाषा के धागे से सब एक साथ बंधे रहें। लेकिन, राष्ट्रभाषा होते हुए भी इसे वह दर्जा नहीं मिल पाया जो इसे मिलना चाहिये

भारत में मुगलों और अंग्रजों ने भी राज्य किया और यही इसका कारण भी हो सकता है। कुछ हद तक हम हिन्दी भाषा का प्रयोग करने से अपने को छोटा भी मानते हैं और अंग्रेजी प्रयोग करने में बड़प्पन समझते हैं। हमें इस मनःस्थिति को सुधारना होगा और यह कार्य अपने घर से ही शुरू होना चाहिये अन्यथा एक दिन हम अपनी राष्ट्र भाषा को समझने के लिए इन्टरनेट का सहारा लेने लगेंगे जो कि हमने शुरू कर ही दिया है। हिन्दी माध्यम के विद्यालयों के अतिरिक्त अन्य किसी विद्यालय में हिन्दी को बढ़ावा नहीं मिल पाता। हमें बच्चों को हिन्दी किताबें पढ़ने एवं हिन्दी में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये, क्योंकि यह वह आदत है जो बचपन से ही विकसित की जा सकती है।

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