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निम्नलिखित में से किसी 1 विषय पर दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 80-100
शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए।
भारतीय नारी के समक्ष चुनौतियाँ
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Explanation:
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1. वैदिक काल : वैदिक काल की नारियों ने पुरुषों के समकक्ष स्थिति का आनंद लिया। वैदिक काल की महिलाएं शिक्षित होती थीं। उनका विवाह परिपक्वता की वय में ही होता था तथा उन्हें अपने वर को चुनने की आजादी होती थी।
2. मध्यकाल : मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। बाल विवाह, पुनर्विवाह पर रोक, बहुविवाह, राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियों के माध्यम से नारी जाति का शोषण आरंभ हो गया। नारियों को पर्दे के पीछे कैद कर दिया गया। इसके बावजूद अनेक नारियों ने संघर्ष करते हुए राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां अर्जित कर सम्मान पाया। रजिया सुल्तान, गोंड रानी दुर्गावती, रानी नूरजहां, शिवाजी की माता जीजाबाई जैसी महिलाओं ने नारी जाति को गौरव प्रदान किया। मीराबाई ने भक्ति रस की धारा बहाई और वे इतिहास की एक किंवदंती बन गईं।
3. अंग्रेजी राज : अंग्रेजी राज में नारियों की स्थिति में धीमी गति से सुधार आना आरंभ हुआ। नारियों को शिक्षा पाने का अवसर मिला। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के पक्ष में बड़ा योगदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर उनके छक्के छुड़ा दिए। आजादी की लड़ाई में अनेक महिलाओं जैसे डॉ. एनी बेसेंट, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुभाष चंद्र बोस की सेना की एक कैप्टन लक्ष्मी सहगल थीं।
4. आजाद भारत : आजादी के बाद सन् 1950 में जब देश को संविधान मिला तो उसमें स्त्रियों को सुरक्षा, सम्मान और पुरुषों के समान अवसर व अधिकार मिले किंतु अशिक्षा, पुरातनवादी सोच तथा कमजोर सामाजिक ढांचे के कारण नारी जाति उन अवसरों और अधिकारों का पूर्ण रूप से लाभ न उठा पाई। अपने बचपन में वह पिता, जवानी में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र पर निर्भर रही। पति के घर में प्रवेश करने के बाद उसकी अर्थी ही बाहर निकलती रही।
मगर आजाद भारत के इतिहास को नारियों की गौरव गाथा से रीता नहीं रहना था। इंदिरा गांधी 1966 में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। सुचेता कृपलानी यूपी की मुख्यमंत्री, किरण बेदी प्रथम महिला आईपीएस, कमलजीत संधू एशियन गेम्स में प्रथम गोल्ड पदकधारी, बेछेंद्री पाल एवरेस्ट पर प्रथम भारतीय महिला, मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार, फातिमा बीबी प्रथम महिला जज सुप्रीम कोर्ट, मेधा पाटकर सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अनेक महिलाओं ने पुरुषवादी समाज की सोच को धता बताते हुए अपनी बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता और सामर्थ्य का परिचय दिया और इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया।