Hey Mathrubhumi is Kavita ke Pratham chhah panktiyon ka bhavarth bataiye
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full bawarth de diya h Kyuki next question mein Bhi pucha h
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मातृभूमि कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।
- वे इस कविता के माध्यम से बताते है की हमारी मातृभूमि हरी है और जब नीला आकाश छाता है तब ऐसा लगता है मानो धरती माता ने नीला वस्त्र ओढ़ा हो।
- ऐसा प्रतीत होता है मानो मातृभूमि पर सूर्य और चन्द्रमा का मुकुट धारण होता हो। दिन के समय सूर्य का और शाम के समय चन्द्रमा का मुकुट शुशोभित होता है।
- नदियों के बहने से ऐसे लगता है मानो प्रेम बह रहा हो और प्रेम का प्रवाह हो रहा हो। फूल तारें आभूषण के सामान शोभित है।
- पक्षियों का समूह ऐसा लगता है जैसे भारतमाता के यश का गुणगान कर रहे हो। शेषनाग जब अपने फन फैलता है तोह ऐसा लता है मानो वो ही माता का सिंघासन हो।
- मैथिलीशरण जी इन ही सब विशेषताओं पर बलिहारी है और मातृभूमि ही सत्य में भगवान् की कोई मूर्ति है।
#SPJ2
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