Hindi, asked by hinal4, 1 year ago

hey plss ans it gys plss

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hinal4: plssss ans
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Answered by jyotitomar
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किसी भी मनुष्य के लिये अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये अपनी  इंद्रियों को निरंतर सक्रिय रखना पड़ता है।  उसे दर्शन, श्रवण अध्ययन, चिंत्तन और मनन के साथ ही अनुसंधान कर इस संसार के भौतिक तथा अध्यात्मिक दोनों तत्वों का ज्ञान करना चाहिये।  भौतिक तत्वों का ज्ञान देने वाले तो बहुत मिल जाते हैं पर अध्यात्मिक ज्ञान समझाने वाले गुरु बहुत कठिनाई से मिलते हैं। यहां तक कि जिन पेशेवर धार्मिक प्रवचनकारों को गुरु माना जाता है वह भी धन या शुल्क लेकर उस श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान रटकर सुनाते हैं जो निष्काम कर्म का अनुपम सिद्धांत बताती है।  उनके दर्शन और और वचन श्रवण का प्रभाव कामनाओं की अग्नि में जलकर नष्ट हो जाता है।                    ऐसे मेें अपने प्राचीन ग्रथों का अध्ययन कर ही ज्ञानार्जन करना श्रेष्ठ  लगता है। श्रीमद्भागवत गीता को अध्ययन करते समय यह अनुुभूति करना चाहिये कि हम अपने गुरु के शब्द ही पढ़ रहे हैं। भारतीय अध्यात्मिक ग्रंथों में गंुरू की महिमा बताई गयी है पर पेशेवर ज्ञानी केवल दैहिक या भौतिक आधारों तक ही सीमित रखकर अपनी पूजा करवाते हैं। इस संबंध में हमारे एक आदर्श शिष्य के रूप में एकलव्य का उदाहरण हमेशा विद्यमान रहता  है, जिन्होंने गुरू द्रोणाचार्य की प्रस्तर प्रतिमा बनाकर धनुर्विद्या सीखी।  इसका सीधा अर्थ यही है कि केवल देहधारी गुरु होना ही आवश्यक नहीं है।  जिस तरह प्रतिमा गुरु बन सकती है उसी तरह पवित्र शब्द ज्ञान से सुसज्जित ग्रंथ भी हृदय से अध्ययन करने पर हमारे गुरु बन जाते हैं।  एक बात तय रही कि इस संसार में विषयों के विष का प्रहार अध्यात्मिक ज्ञान के अमृत से ही झेला जा सकता है और उसके लिये कोई गुरु-व्यक्ति, प्रतिमा और किताब होना आवश्यक है।                    इस पावन पर्व पर सहयोगी ब्लॉग लेखक मित्रों, पाठकोें, फेसबुक और ट्विटर के अनुयायियों के साथ ही  भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा मानने वाले सभी सहृदय जनों को हार्दिक बधाई।


jyotitomar: Pls mark me brainlist
jyotitomar: Ok bye
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