Hindi, asked by SillySam, 1 year ago

HEYA BROTHERS AND SISTERS _____________आज हिन्दी दिवस के अवसर पर 'भारत से लुप्त होती हिन्दी ' विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए । __________Spammers be away! !!!

Answers

Answered by RJRishabh
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नमस्कार दोस्तों...
हम भारतीय अपनी मातृभाषा भूल रहे हैं

भारतीय मान्यताओं के अनुसार, भारत में सरस्वती के तट पर विश्व में पहली बार 'शब्द' प्रकट हुआ। ऋग्वैदिक ऋषि माध्यम बने। सर्वसत्ता ने स्वयं को शब्द में अभिव्यक्त किया। ब्रह्म शब्द बना, शब्द ब्रह्म कहलाया। अभिव्यक्ति बोली कहलाई और भाषा का जन्म हो गया। नवजात शिशु का नाम पड़ा, संस्कृत। संस्कृत यानी परिष्कृ, सुव्यवस्थित, बार-बार पुनरीक्षित। अक्षर अक्षत हैं, अविनाशी हैं। सो संस्कृत की अक्षर ऊर्जा से दुनिया में ढेर सारी भाषाओं का विकास हुआ। लोक आकांक्षाओं के अनुरूप संस्कृत ने अनेक रूप पाए। भारत में वह वैदिक से लोकसंस्कृत बनी। प्राकृत बनी। पालि बनी। अपभ्रंश होकर हिंदी बनी। भारत स्वाभाविक रूप से हिंदी में अभिव्यक्त होता है। भारत के संविधान में हिंदी राजभाषा है, लेकिन आजतक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई।

भारत की संविधान सभा में राष्ट्रभाषा के सवाल पर 12 से लेकर 14 नवंबर (1949) तक लगातार तीन दिन बहस हुई। लंबी बहस के बाद 14 नवंबर 1949 को अंग्रेजी मुख्य रानी बनी और हिंदी पटरानी। बहस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने कहा, 'पिछले एक हजार वर्ष के इतिहास में भारत ही नहीं सारे दक्षिण पूर्व एशिया में और केंद्रीय एशिया के कुछ भागों में भी विद्वानों की भाषा संस्कृत ही थी। अंग्रेजी कितनी ही अच्छी और महत्तवपूर्ण क्यों न हो लेकिन इसे हम सहन नहीं कर सकते। हमें अपनी ही भाषा हिंदी को अपनाना चाहिए।' अक्टूबर, 1917 में गांधी जी ने राष्ट्रभाषा की परिभाषा देते हुए कहा था, 'उस भाषा के द्वारा भारत के आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक काम हो सकेंगे, जिसे भारत के ज्यादातर लोग बोलते होंगे। अंग्रेजी में इनमें से एक भी लक्षण नहीं है। हिंदी में ये सारे लक्षण मौजूद हैं।'

निःसंदेह विश्व की अन्य भाषाओं की तरह हिंदी के समक्ष भी कुछ समस्याएं हैं लेकिन ये समस्याएं मुख्यतः अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण कम बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान के हिंदी तथा अन्य भाषाओं के लिए उपेक्षा के कारण ज्यादा है। हम हिंदी ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान की सभी भाषाओं को अंग्रेजी के घेरे में बंद रखना चाहते हैं और ऊपर से दिखाने के लिए बात मातृभाषा में करते हैं। सौ फीसदी हिंदी राज्यों, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड और दिल्ली में भी अंग्रेजी, हिंदी पर भारी दिखती है। अंग्रेजी सीखने-जानने-बोलने के मोह ने हिंदी भाषी लोगों के मन में हिंदी के लिए उपेक्षा का भाव भर दिया है। हमें ये स्मरण रखना होगा कि देश को आर्थिक और राजनीतिक गुलामी से मुक्त कर लेने से ही स्वातंत्र्य की साधना सिद्धि नहीं हो सकती। उसके लिए मानसिक दासता की समाप्ति भी आवश्यक है। और यह कार्य स्वभाषा के प्रति स्वाभिमान जाग्रत करके ही किया जा सकता है। श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र की ये कालजयी पंक्तियां हर समय प्रासंगिक रहेंगी कि निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान तो, मिटे न हीय को शूल।

यदि हिंदी या अन्य कोई भाषा सरकारी कामकाज और रोजगार की भाषा नहीं बनती तो उसके भविष्य को शुभ नहीं कहा जा सकता है। हिंदी देश में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है और उसे बड़े स्तर पर फिल्म, टेलीविजन, इंटरनेट वाले अपना रहे हैं। यहीं नहीं अब तो वो विज्ञापनों के लिए भी सशक्त भाषा बन गई है। लेकिन फिर भी उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं है, जिसकी वो हकदार है। जो लोग हिंदी को अपनाकर अथवा उसका सहारा लेकर कमाई कर रहे हैं, वे भी हिंदी के प्रति गर्व और अपनत्व का भाव मुश्किल से ही रखते हैं। हिंदी को बढ़ावा देने के मामले में हिंदी समाचार चैनलों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। अब तो स्पोर्ट्स चैनल भी हिंदी में मैच प्रसारित कर रहे हैं।

सरकारें बेशक पिद्दी साबित हुई हैं लेकिन बाजार की भाषा धीरे-धीरे हिंदी बनती जा रही है। हिंदी एक नया चलन बन गया है। ज्यादातर अंग्रेजी प्रसारक हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अपना विस्तार कर चुके हैं, बाकी बचे लोग भी उस तैयारी में लगे हैं। हिंदी की पो बारह है। भाषा का भविष्य अब बाजार ही तय करता है। आशा ही वरन पूर्ण विश्वास है कि हिंदी आने वाले दिनों में देश की मजबूती बनेगी।

इस तरह के एक अच्छा सवाल पूछने के लिए धन्यवाद ....
आशा है कि हम एक-दूसरे की मदद करेंगे ...

RJRishabh: बहन, यह एक अच्छा सवाल था।
SillySam: धन्यवाद
RJRishabh: उम्मीद है कि मैंने इस सवाल में कोई गलती नहीं की है
SillySam: नहीं । आपने तो अपने विचार व्यक्त किए है और विचार कभी गलत नहीअं होते ।
RJRishabh: मुझे वह सुनकर बेहद खुशी हुई...
SillySam: :) :) :) _____xD
RJRishabh: ठीक है बहन ... अब मेरी बैटरी कम हो रही है।
RJRishabh: bye
SillySam: ठीक है ।
Answered by Mankuthemonkey01
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भारत से लुप्त होती हिंदी :-

हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसका उद्गम संस्कृत से माना जाता है। हिंदी भाषा विश्व की चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। 2016 में यह तीसरे पायदान पर थी पर 2017 में यह चौथे पर खिसक गई। यह हिंदीभाषियों के लिए दुख का विषय है क्योंकि इससे पता चलता है कि उनकी भाषा का प्रचार प्रसार कम हो रहा है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमे भिन्न - भिन्न भाषाएं समाहित हैं। मसलन, ज़रूर मूल रूप से उर्दू शब्द है परंतु अब यह हिंदी का ही एक अंग बन चुका है। साथ ही, हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे जैसे बोला जाता है, वैसे ही लिखा जाता है। अर्थात इसमे अंग्रेज़ी की तरह साइलेंट वर्ड्स (Silent words) नहीं होते। इस कारण हिंदी अन्य भाषाओं की अपेक्षा आसान होती है और इसलिए ही हिंदी को एक वैज्ञानिक भाषा कहा जाता है।

बावजूद इन गुणों के, हिंदी का प्रचार कम हो रहा है। इसको रोकने से पहले इसकी वजह जाननी होगी क्योंकि किसी भी उपचार के लिए आपको रोग की जानकारी होनी चाहिए। हिंदी के प्रचार प्रसार कम होने की कई वजहें हो सकती हैं जिनमे से मुख्य हैं :-

1) अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रभाव

अंग्रेज़ी एक ग्लोबल भाषा के रूप में प्रचलित हुई है इसी कारण से लोग हिंदी की अपेक्षा अंग्रेज़ी पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं।

2) नए जमाने की पुरानी सोच

अंग्रेज़ी के बढ़ते वर्चस्व के कारण आज हिंदी भाषियों को लोग अनपढ़ और गवार मानते है जो कि सरासर गलत है। जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा का सम्मान नही कर सकता, उसको किसी भाषा को निम्न श्रेणी बोलने का कोई अधिकार नहीं है।

3) सरकार का कोई ठोस कदम न उठाना

भारत एक स्वतंत्र देश है परंतु इसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी और अंग्रेज़ी भारत की राजभाषाएं है। सरकार को चाहिए कि वह दक्षिण भारत, जहां पर हिंदी का वर्चस्व कम है, वहां पर हिंदी अनिवार्य कर देनी चाहिए। सरकार ने अंग्रेज़ी को जो राजभाषा का महत्व दिया है, वह उसे वापस ले लेना चाहिए। विकसित देश, उदाहरणस्वरूप जापान भी अंग्रेज़ी को कम, अपनी भाषा को अधिक महत्त्व देता है। भारत सरकार को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए


अब प्रश्न उठता है कि हम क्या कर सकते हैं, क्योंकि सरकार के भरोसे रहना हमारी भूल भी हो सकती है। सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा तब तक नही घोषित कर सकती जब तक एक अच्छी खासी जनसंख्या हिंदी से परिचित न हो। हमें अपनी अपनी तरफ से प्रयास करने चाहिए। मसलन, अगर कहीं पर हिंदी का अपमान होता दिखे, वहां पर हमें हिंदी के पक्ष में आवाज़ उठानी चाहिए।

जब तक देश के नागरिक जागरूक और जिम्मेदार नही होंगे, तब तक देश कतई प्रगति नही कर सकता।

आशा है यह उत्तर आपकी सहायता करेगा।
(पाठकगण इसे सिर्फ उत्तर स्वरूप ना ले, बल्कि अमल करने का प्रयास भी करें)
सधन्यवाद।

SillySam: Gr8 answer ✌✌✌
SillySam: But I have a contradictory fact to this
Mankuthemonkey01: I will be pleased to listen but in inbox :)
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