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1 गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित उदाहरणों से की हैं:
१ - गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की हैं जो नदी के जल में रहते हुए भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है। अर्थात जल में रहते हुए भी जल का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। उसी प्रकार श्रीकृष्ण का सानिध्य पाकर भी उद्धव श्रीकृष्ण के प्रभाव से मुक्त है।
२ - गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना जल के मध्य रखे तेल की मटकी के साथ की हैं, जिस पर जल की एक बूंद भी टिक नहीं पाती। ठीक वैसे ही उद्धव श्रीकृष्ण के समीप रहते हुए भी उनके रूप के आकर्षण तथा प्रेम-बंधन से सर्वथा मुक्त हैं।
३ - उद्धव ने गोपियों को जो योग का उपदेश दिया था उस पर गोपियों का यह कहना है की यह योग सुनते ही कड़वी ककड़ी के सामान अत्यंत अरूचिकर प्रतीत होता है।
2 गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को हारिल पक्षी के उदाहरण के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। वे अपनों को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोई लकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़ता। उसी प्रकार गोपियों ने भी मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपने ह्रदय में दृढ़तापूर्वक बसा लिया है। वे जागते, सोते स्वप्नावस्था में, दिन-रात कृष्ण-कृष्ण की ही रट लगाती रहती हैं। साथ ही गोपियों ने अपनी तुलना उन चीटियों के साथ की है जो गुड़ (यहाँ श्रीकृष्ण भक्ति) पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर स्वयं को छुड़ा न पाने के कारण वहीं प्राण त्याग देती है।
3 गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनका मन चंचल है और इधर-उधर भटकता है। उद्धव अपने योग के संदेश में मन की एकाग्रता का उपदेश देतें हैं, परन्तु गोपियों का मन तो कृष्ण के अनन्य प्रेम में पहले से ही एकाग्र है। इस प्रकार योग-साधना का उपदेश उनके लिए निरर्थक है। योग की आवश्यकता तो उन्हें है जिनका मन स्थिर नहीं हो पाता, इसीलिये गोपियाँ चंचल मन वाले लोगों को योग का उपदेश देने की बात कहती हैं
4 गोपियाँ अपनी राजनैतिक प्रबुद्धता का परिचय देते हुए राजा का धर्म बताती हैं कि राजा का कर्तव्य है कि वह किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा पर कोई आँच न आने दे और हरसंभव स्थिति में प्रजा की भलाई के लिए सोचे तथा नीति से राजधर्म का पालन करे। एक राजा को प्रजा के सुख-दुख का साथी होना चाहिए।
5 गोपियाँ अपनी राजनैतिक प्रबुद्धता का परिचय देते हुए राजा का धर्म बताती हैं कि राजा का कर्तव्य है कि वह किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा पर कोई आँच न आने दे और हरसंभव स्थिति में प्रजा की भलाई के लिए सोचे तथा नीति से राजधर्म का पालन करे। एक राजा को प्रजा के सुख-दुख का साथी होना चाहिए।
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