India Languages, asked by aditi230542, 9 months ago

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8

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पहला अध्याय - श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद

(योद्धाओं की गणना और सामर्थ्य)

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥ (१)

भावार्थ : धृतराष्ट्र ने कहा - हे संजय! धर्म-भूमि और कर्म-भूमि में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे पुत्रों और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया? (१)

संजय उवाच

दृष्टा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।

आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥ (२)

भावार्थ : संजय ने कहा - हे राजन्! इस समय राजा दुर्योधन पाण्डु पुत्रों की सेना की व्यूह-रचना को देखकर आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर कह रहे हैं। (२)

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌ ।

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥ (३)

भावार्थ : हे आचार्य! पाण्डु पुत्रों की इस विशाल सेना को देखिए, जिसे आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न ने इतने कौशल से व्यूह के आकार में सजाया है। (३)

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ (४)

भावार्थ : इस युद्ध में भीम तथा अर्जुन के समान अनेकों महान शूरवीर और धनुर्धर है, युयुधान, विराट और द्रुपद जैसे भी महान योद्धा है। (४)

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌ ।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ॥ (५)

भावार्थ : धृष्टकेतु, चेकितान तथा काशीराज जैसे महान शक्तिशाली और पुरुजित्, कुन्तीभोज तथा शैब्य जैसे मनुष्यों मे श्रेष्ठ योद्धा भी है। (५)

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌ ।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥ (६)

भावार्थ : युधामन्यु जैसे महान पराक्रमी तथा उत्तमौजा जैसे अत्यन्त शक्तिशाली, सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्रों सहित ये सभी महान योद्धा हैं। (६)

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥ (७)

भावार्थ : हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! हमारी तरफ़ के भी उन विशेष शक्तिशाली योद्धाओं को भी जान लीजिये और आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के उन योद्धाओं के बारे में बतलाता हूँ। (७)

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ (८)

भावार्थ : मेरी सेना में स्वयं आप-द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा जैसे योद्धा है, जो सदैव युद्ध में विजयी रहे हैं। (८)

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥ (९)

भावार्थ : ऎसे अन्य अनेक शूरवीर भी है जो मेरे लिये अपने जीवन का बलिदान देने के लिये अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित है और यह सभी युद्ध-विधा में निपुण है। (९)

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌ ।

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌ ॥ (१०)

भावार्थ : इस प्रकार भीष्म पितामह द्वारा अच्छी प्रकार से संरक्षित हमारी सेना की शक्ति असीमित है, किन्तु भीम द्वारा अच्छी प्रकार से संरक्षित होकर भी पांडवों की सेना की शक्ति सीमित है। (१०)

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ (११)

भावार्थ : अत: सभी मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहकर आप सभी निश्चित रूप से भीष्म पितामह की सभी ओर से सहायता करें। (११)

(योद्धाओं द्वारा शंख-ध्वनि)

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।

सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌ ॥ (१२)

भावार्थ : तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम-प्रतापी पितामह भीष्म ने दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए सिंह-गर्जना के समान उच्च स्वर से शंख बजाया। (१२)

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