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स्वरूप और महत्व
शिक्षा वयस्क जीवन के प्रति स्त्रियों के विकास के लिए एक आधार के रूप में विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा अन्य अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए लड़कियों और महिलाओं को सक्षम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बहुत सी समस्याओं को पुरुषों से नहीं कह सकने के कारण महिलाएं कठिनाई का सामना करती रहती हैं। अगर महिलाएँ शिक्षित हों तो वे अपने घरों की सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। स्त्री शिक्षा राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय विकास में मदद करता है। महिला शिक्षा एक अच्छे समाज के निर्माण में मदद करती है।
समस्याएं
रूढ़िवादी सांस्कृतिक नज़रिए के कारण लड़कियों को अक्सर पाठशाला जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। इसका एक कारण गरीबी भी देखा जा सकता है क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण भी माता-पिता अपने सभी बच्चों को शिक्षा देने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते और लड़कियों को भी अपने साथ मजदूरी पर ले जाना पड़ता है।
भारत में स्त्री शिक्षा
भारत की एक छात्रा
भारत में वैदिक काल से ही स्त्रियों के लिए शिक्षा का व्यापक प्रचार था। मुगल काल में भी अनेक महिला विदुषियों का उल्लेख मिलता है।
पुनर्जागरण के दौर में भारत में स्त्री शिक्षा को नए सिरे से महत्व मिलने लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वार सन 1854 में स्त्री शिक्षा को स्वीकार किया गया था। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के कारण साक्षरता के दर 0.2% से बदकर 6% तक पहुँच गया था। कोलकाता विश्वविद्यालय महिलाओं को शिक्षा के लिए स्वीकार करने वाला पहला विश्वविद्यालय था। 1986 में शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय नीति प्रत्येक राज्य को सामाजिक रूपरेखा के साथ शिक्षा का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात सन 1947 से लेकर भारत सरकार पाठशाला में अधिक लड़कियों को पढ़ने का मौका देने के लिये, अधिक लड़कियों को पाठशाला में दाखिला करने के लिये और उनकी स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश में अनेक योजनाएँ बनाए हैं जैसे कि नि:शुल्क पुस्तकें, दोपहर की भोजन आदि।
जोन इलियोट ने पहला महिला विश्वविद्यालय खोला था। सन् 1849 में और उस विश्वविद्यालय क नाम बीथुने कालेज था।
सन् 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पुनर्गठन देने को सरकार ने फैसला किया। सरकार ने राज्य कि उन्नती की लिये, लोकतंत्र की लिये और महिलाओं का स्थिति को सुधारने की लिये महिलाओं को शिक्षा देना ज़रूरी समझा था। भारत की स्वतंत्रता के बाद सन् 1947 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग को बनाया गया। आयोग ने सिफारिश किया कि महिलाओं कि शिक्षा में गुणवता में सुधार लिया जाए। भारत सरकार ने तुरन्त ही महिला साक्षारता की लिये साक्षर भारत मिशन की शुरूआत किया था।
इस मिशन में महिलाओं की अशिक्षा की दर को नीचे लाने की कोशिश की गई है। बुनियादी शिक्षा उन्हें अनिवार्य है और अपने स्वयं के जीवन और शरीर पर फैसला करने का अधिकार देने, बुनियादी स्वास्थ्य, पोषण और परिवार नियोजन की समझ के साथ लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा प्रदान हो रही है।
लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा गरीबी पर काबू पाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। कुछ परिवारों का काम कर रहे पुरुष दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाओं में विकलांग हो जाते हैं। उस स्थिति में, परिवार का पूरा बोझ परिवारों की महिलाओं पर टिका रहता है। महिलाओं की ऐसी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हे शिक्षित किया जाना चाहिए। वे विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश कर सकती हैं। महिलाएँ शिक्षकों, डॉक्टरों, वकीलों और प्रशासक के रूप में काम कर रही हैं। शिक्षित महिलाएँ अच्छी माँ बन सकती हैं। महिलाओं की शिक्षा से दहेज समस्या, बेरोज़गारी की समस्या, आदि सामाजिक शांति से जुड़े मामलों को आसानी से हल किया जा सकता है।
स्त्री शिक्षा की भूमिका
संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध है- ‘नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरु:’. इसका मतलब यह है कि इस दुनिया में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान गुरु नहीं है।’ यह बात पूरी तरह सच है। बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है। माता ही अपने बच्चे को पाठ पढ़ाती है। बालक का यह प्रारंभिक ज्ञान पत्थर पर बनी अमिट लकीर के समान जीवन का स्थायी आधार बन जाता है। लेकिन आज पूरे भारतवर्ष में इतने असामाजिक तत्व उभर आए हैं, जिन्होंने मां-बहनों का रिश्ता खत्म कर दिया है और जो भोग-विलास की जिंदगी जीना अधिक उपयोगी समझने लगे हैं। यही कारण है कि कस्बों से लेकर शहरों की मां-बहनें असुरक्षित हैं।
असुरक्षा के कारण ही बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसी अनेक घटनाओं के जाल में फँसकर महिलाओं का जीवन नर्क बन चुक
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it is correct
Explanation:
you are a nice women
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