English, asked by subashc656, 8 months ago

hi guys .....

tell me about role of a teacher ?? in our life ​

Answers

Answered by dhanushree7552
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Answer:

we might end up forgetting a lot of people in our lives but not our teachers. Everyone of us remembers that one teacher who not only helped to simplify the most terrible and complex equations but also helped us in understanding life.

The World Teacher's Day is celebrated on October 5, but in India Teacher's Day is celebrated on September 5 on the birthday of former President of India, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan.

Many scholars, researchers, artists have said that they have at least one  teacher who helped them to become what they are today. Here are some of the quotes to respect our teachers:

Answered by skb08091997
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मां मां होती है:

कुसुम और प्रज्ञा के लिए मां जैसी भी थीं, उन की जिम्मेदारी थीं. बेशक यह जिम्मेदारी निभाते हुए उन का स्वयं का जीवन असहनीय बन गया. लेकिन मां का दर्द वे समझती थीं क्योंकि वे भी तो मां थीं.

उस दिन सोशल नैटवर्किंग साइट पर जन्मदिन का केक काटती हुई प्रज्ञा और कुसुम का अपनी मां के साथ फोटो देख कर मुझे बड़ा सुकून मिला. नीचे फटाफट कमैंट डाल दिया मैं ने, ‘‘आंटी को स्वस्थ देख कर बहुत

अच्छा लगा.’’

सालभर पहले कुसुम अपने पति के लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरण के समय जिस प्रकार अपनी मां को ऐंबुलैंस में ले कर गई थी, उसे देख कर तो यही लग रहा था कि वे माह या 2 माह से ज्यादा नहीं बचेंगी. दिल्ली में उस की बड़ी बहन प्रज्ञा पहले से अपनी ससुराल वालों के साथ पुश्तैनी घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभाल रही थी. जब कुसुम के पति का भी दिल्ली का ट्रांसफर और्डर आया तो 6 माह से बिस्तर पर पड़ी मां को ले कर वह भी चल पड़ी. यहां लखनऊ में अपनी 2 छोटी बेटियों के साथ बीमार मां की जिम्मेदारी वह अकेले कैसे उठाती. बड़ी बहन का भी बारबार छुट्टी ले कर लखनऊ आना मुश्किल हो रहा था.

प्रज्ञा और कुसुम दोनों जब हमारे घर के बगल में खाली पड़े प्लौट में मकान बनवाने आईं तभी उन से परिचय हुआ था. उन के पिता का निधन हुए तब 2 वर्ष हो गए थे. उन की मां हमारे ही घर बैठ कर बरामदे से मजदूरों को देखा करतीं और शाम को पास ही में अपने किराए के मकान में लौट जातीं. वे अकसर अपने पति को याद कर रो पड़तीं. उन्हीं से पता चला था कि बड़ी बेटी प्रज्ञा 12वीं में और छोटी बेटी कुसुम छठवीं कक्षा में ही थी जब उन के पति को दिल का दौरा पड़ा. जिसे वे एंग्जाइटी समझ कर रातभर घरेलू उपचार करती रहीं और सुबह तक सही उपचार के अभाव में उन की मौत हो गई.

वे हमेशा अपने को कोसती रहतीं, कहतीं, ‘प्रज्ञा को अपने पिता की जगह सरकारी क्लर्क की नौकरी मिल गई है, उस का समय तो अच्छा ही रहा. पहले पिता की लाड़ली रही, अब पिता की नौकरी पा गई. छोटी कुसुम ने क्या सुख देखा? उस के सिर से पिता का साया ही उठ गया है.’

दरअसल, अंकल बहुत खर्चीले स्वभाव के थे. महंगे कपड़े, बढि़या खाना और घूमनेफिरने के शौकीन. इसीलिए फंड के रुपयों के अलावा बचत के नाम पर बीमा की रकम तक न थी.

प्रज्ञा हमेशा कहती, ‘मैं ही इस का पिता हूं. मैं इस की पूरी जिम्मेदारी लेती हूं. इस को भी अपने पैरों पर खड़ा करूंगी.’

आंटी तुनक पड़तीं, ‘कहने की बातें हैं बस. कल जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, तो तुम्हारी तनख्वाह पर तुम्हारे पति का हक हो जाएगा.’

किसी तरह से 2 कमरे, रसोई का सैट बना कर वे रहने आ गए. अपनी मां की पैंशन प्रज्ञा ने बैंक में जमा करनी शुरू कर दी और उस की तनख्वाह से ही घर चलता. उस पर भी आंटी उसे धौंस देना न भूलतीं, ‘अपने पापा की जगह तुझे मिल गई है. कल को अपनी ससुराल चली जाएगी, फिर हमारा क्या होगा? तेरे पापा तो खाने में इतनी तरह के व्यंजन बनवाते थे. यह खाना मुझ से न खाया जाएगा.’ और भी न जाने क्याक्या बड़बड़ाते हुए दिन गुजार देतीं.

कुसुम सारे घर, बाहर के काम देखती. साथ ही अपनी पढ़ाई भी करती. बड़ी बहन सुबह का नाश्ता बना कर रख जाती, फिर शाम को ही घर लौट कर आती. वह रास्ते से कुछ न कुछ घरेलू सामान ले कर ही आती.

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दोनों बहनें अपने स्तर पर कड़ी मेहनत करतीं, पर आंटी की झुंझलाहट बढ़ती ही जा रही थी. कभी पति, तो कभी अपना मनपसंद खाना, तरहतरह के आचार, पापड़, बडि़यां सब घर में ही तैयार करवातीं.

छुट्टी के दिन दोनों बहनें आचार, पापड़, बडि़यां धूप में डालती दिख जातीं. मेरे पूछने पर बोल पड़तीं, ‘पापा खाने के शौकीन थे तभी से मां को भी यही सब खाने की आदत हो गई है. न बनाओ, तो बोल पड़ती हैं, ‘जितना राजपाट था मेरा, तेरे पिता के साथ ही चला गया. अब तो तुम्हारे राज में सूखी रोटियां ही खानी पड़ रही हैं.’

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