Hi..I need an essay for the following topic- आज के युग में नैतिक शिक्षा। ~Lakshita
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हमें याद है जब हम छोटे थे तो हमारे पाठ्यक्रम में एक नैतिक शिक्षा की पुस्तक होती थी, जो सरदार भगत सिंह, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद आदि मनीषियों व उनकी वीरगाथाओं की प्रेरणा श्रोत होती थी। जिन्हें पढ़कर बहुत आनंद आता था और मन में उन जैसा बनने की तीव्र इच्छा होती थी। साथ ही बचपन में जब हम गाँव के बुजुर्ग दादा-दादियों की संगती में कुछ पल ब्यतीत करते थे, तो वे हमको बहुत सारी अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाया करते थे जिसका कुछ न कुछ प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर और आचरण पर पड़ता था। उनमे से कुछ कहानिया प्रेरणादायी होती थी, कुछ परोपकारी होती थी, कुछ जीवों पर दया करने वाली होती थी, कुछ देवी देवितोँ की व कुछ क्षेत्रीय कहानियां होती थी और सबका उद्देश्य हमारे अन्दर अच्छे संस्कारों को डालने का होता था और जो आज भी हमें संस्कारित बनाए रखने में बहुत मदद करते है। आज भी यदि हमारे कदम अपने पथ से विचलित होते हैं तो वो पुरानी कही हुई बातें हमें याद आज जाती है और हम फ़िर से सही पथ पर अग्रसर हो जाते हैं।
कहते है कि जब बच्चा छोटा होता है तो, उस समय उसका मस्तिष्क बिल्कुल शून्य होता है। आप उसको जैसे संस्कार और शिक्षा देंगे वो उसी राह पर आगे बढता है। अगर बाल्यकाल में बच्चे को अच्छे-बुरे, सही-गलत को पहचानने की समझ दे दी जाती है तो वह जीवन भर उसका साथ देती है। हमारे समाज में माता पिता के बाद गुरु और तत्पश्चात देवता को स्थान दिया गया है, जहाँ बच्चा माता पिता से ही गुरु तथा देवता के बारे में सीखता तथा समझता है। बाल्यकाल में बच्चे को संस्कारित करने में घर के बुजुर्गों का, माता पिता का बहुत बड़ा हाथ होता है किन्तु दुःख की बात तो यह है कि ये सब ही मूल्य हमारे जीवन से बहुत दूर हो गए हैं । हम स्टेट्स और धन के पीछे एक अंधे की तरह दौड़ रहे हैं आज अपनी नयी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने के लिए हमारे पास समय नही है। अब शायद ही किसी बच्चे को वो दादा दादी की कहानिया सुनने को मिलती होंगी, वो लोरी वो गीत सुनने को मिलते होंगे और शायद न ही कोई माँ बाप के पास इतना समय है कि वो अपने बच्चे को संस्कारित होने के संस्कार दे सकें। यही कारण है कि आज की नयी पीढ़ी दुर्गा माता को लोइन वाली लेडी और गणेश जी को एलिफेंट मैन के नाम से जानती है।
दादा दादी कि जगह इन्टरनेट ने लेली है और गुल्ली-डंडा की जगह वीडियो गेम्स ने ऐसे में बच्चे के चारित्रिक निर्माण की जिम्मेदारी मीडिया को लेनी चाहिए थी आज सबसे अधिक वही टीवी व न्यूज चेनल अपनी टी आर पी प्रतियोगिता के चलते आज की नयी पीढ़ी को अच्छे व ज्ञानवर्धक कार्यक्रम दिखने के बजाय कई घटिया तथा वाहियात कार्यक्रम परोश कर कुप्रभावित कर रहे हैं। जिनमें वे समाज से सबसे बदनाम लोगों को आकर्षण का केंद्र बनाकर नया तमाशा खड़ा करते हैं। जबकि एक शिशु के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया में एक बड़ी हिस्सेदारी लेखन और पत्रकारिता की होती है।
एक बालक से एक आदमी बनाने में सोच-विचार, ज्ञान एवं विवेक जैसे गुणों की आवश्यकता होती है जो की पठन-पाठन एवम दूसरों के विचारों को सुनने तथा उनका विवेचन करने से प्राप्त होते हैं। और इसका श्रेय विद्वान लेखकों, पत्रकारों एवम समाज के उन महान ब्यक्तियों को जाता है जिन्होंने पूरे विश्व में अपनी सोच, ज्ञान अथवा कार्य से अपने राष्ट्र का नाम ऊँचा किया है। आज सारे अखबार, रेडिओ, पत्रिका व विद्द्वान लेखकों की रचनाओं की जगह इन्टरनेट, दर्जनों न्यूज चेनल्स, व टीवी कार्यकर्मों ने लेली है। जहाँ एक अच्छे समाज के निर्माण ���ें मीडिया का एक वर्ग ज्ञानवर्धक, विवेकपूर्ण व सत्य पर आधारित तथ्यों को समाज के सामने रखता है तो वहीँ दूसरी ओर आज मीडिया का एक वर्ग इतना निरंकुश हो गया है कि नैतिकता और चारित्रिक मूल्यों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाने से बाज नहीं आ रहा। उसके पास भी नातो अच्छे पत्रकार हैं नाही पत्रकारिता के लिए अच्छे विषय।
सबसे अधिक दुःख का विषय तो यह है कि जो नैतिक शिक्षा मानव के चरित्र का निर्माण करती है उसे आज अधिकतर स्कूलों के पाठ्यक्रम से ही हटा दिया गया है अथवा उसके अध्यन पर कोई महत्वा नहीं देता, जिसके कारण बिना नैतिक शिक्षा के अध्ययन के आज का बच्चा एक मूर्ख, असभ्य, बेशर्म और मानसिक रूप से विकृत सभ्यता और पीढ़ी का हिस्सा बनता जा रहा है । और एक समय आएगा जब अच्छाई, ममता, करुणा, भक्ति, सम्मान, प्रतिष्ठा, ईमानदारी, सच्चाई, जैसे शब्द भारतीय पुस्तकों से लुप्त हो जायेंगे । आज आवश्यकता है उन मूल्यों को अपनी आने वाली पीढ़ियों में बचा के रखने की जो सही अर्थों में हम भारतवाशियों की एक अमूल्य पहचान है।
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