Hindi, asked by ShreejeethBatgeri, 6 months ago

Himalaya ke Prabhat aur Sandhya ki kya visheshta hai 6 th standard​

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Answered by gk3977948
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हिमालय के सबसे बड़े रहस्य भैरवी पर से उठाया महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी ने पर्दा

भैरवी एक ऐसा रहस्य जिसने स्त्री की परिभाषा ही बदल कर रख दी है.आखिर ये भैरवी कौन है कहाँ से आई है लोगों में भैरवी का इतना खौफ क्यूँ क्या किसी ने भैरवी को देखा है भैरवी के अस्तित्व पर है कई सवाल लेकिन जबाब कोई नहीं था तो जाहिर है ऐसे में दुनिया की निगाहें उत्तर ढूँढने के लिए हिमालय की सबसे बड़ी रहस्य पीठ कौलान्तक पीठ की ओर नजरें उठा कर सवाल के जबाब की प्रतीक्षा करने लगी.....क्योंकि कभी एक ऐसा समय भी रहा है जब कौलान्तक पीठ के महासाधकों को कुलाचार के लिए विश्व भर में बदनाम कर दिया गया था....ये षड़यंत्र था उन धर्म के कथित ठेकेदारों का जिनकी रोटी और चापलूसी को समाज ने वास्तविकता जानने के बाद बंद कर दिया था.......जो औरत के साधना,पूजा,गायत्री,योग,तंत्र,दीक्षा को नकारने के लिए धर्म ग्रंथों को मनमाने तरीके से तोड़ मरोड़ रहे थे......या तो औरत उनके कहे को मानती या फिर धर्म से ही दूर हो जाने को विवश थी.....ऐसे में कौलान्तक पीठ हिमालय ने जो स्वतंत्रता स्त्री को दी वो इन कथित स्त्री विरोधी धर्माचार्यों को सहन नहीं हुई.....उनहोंने कौलाचारियों के बारे में कुछ ऐसी बातें फैला दी जिससे आम जन मानस उनसे कट जाए....हालाँकि बातें निराधार नहीं थी.....लेकिन सत्य भी नहीं.....कौलान्तक पीठ की तंत्र सधानायों में दीक्षा लेने वाली हर स्त्री को भैरवी कहा जाता है.......जिसका अर्थ होता है.....माँ शक्ति.....शिव की संगिनी माँ पारवती को तंत्र ग्रंथों में भैरवी कह कर ही शिव भी पुकारते हैं.....कोई भी तंत्र मार्गी स्त्री भैरवी और पुरुष भैरव के संबोधन से ही पुकारा जाता है......यहाँ एक बहुत बड़ी कमी थी...वो ये की सनातन मान्यता के अनुसार गुरु शिष्य के बीच विवाह नहीं हो सकता.....और एक ही गुरु से दीक्षित स्त्री पुरुष परस्पर विवाह नहीं कर सकते क्योंकि वे गुरु भाई और गुरु बहन होते हैं......लेकिन कौलान्तक पीठ का तर्क विपरीत था....की स्त्री पुरुष के धर्म गुरु अलग अलग होने के कारण गृहस्थी में तनाव रह सकता है.....इस लिए सबसे पहले उनहोंने दो विपरीत नियमों को स्वीकार किया....महारिशी अगत्स्य जिनको आधा हिमालय कहा जाता है.......के पास समस्या ले जाई गयी और उनहोंने दिया अनूठा समाधान.....की गुरु जो जोगी होता है......भी विवाह करने की पूरी स्वतंत्रता रखता है.....साथ ही जोगने....भैरावियाँ....साधिकाएँ भी गुरु गोत्र में विवाह कर सकती हैं.....लेकिन कुल गोत्र में नहीं......जिसका कारण रक्त का एक होना माना जाता है.......इस प्रकार जब ये सुविधा समाज को मिल गयी तो जाहिर है की कौलान्तक पीठ में साधकों की भीड़ इक्कट्ठा होने लगी......जिस कारण बहुतों से यह सहन न हो सका......प्रचलित कथा के अनुसार कौलाचारियों में एक दिव्य साधिका पैदा हुई जिसका नाम था अपरा भैरवी......जिसने दस महाविद्याओं को सिद्ध कर कौतुक विद्या में महारत हासिल कर ली....और सबसे ऊपर जा बैठी......क्योंकि कौतुक विद्या....जिसे आज कल जादूगरी कहा जाता है........जिसका मूल ट्रिक या चातुर्य होता है...को तत्कालीन लोग भली प्रकार नहीं समझ पाते थे.....इस लिए जब अपरा भैरवी कौतुक दिखाती तो लोग दांतों तले अंगुलियाँ दवा देते.....लोगों के मध्य प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी ये जादूगरनी भैरवी किस्से कहानियों में भयंकर रूप धारण करने लगी.....इसके जीवन के एक एक भाग को कहानी में जोड़ा गया......बस यहीं से शुरुआत होती है......भैरवी की.......ऋग्वेद में सांकेतिक रूप से पञ्च चक्रों का विवरण है.......इन्ही पञ्च चक्रों में से एक है भैरवी चक्र.....ये चक्र दो प्रकार के हैं.....एक चीनाचारा चक्र पूजा और शैवमतीय चक्र पूजा.....हिमालयों में चीनाचारा पूजा लागु हुई.....यहाँ गौर करने वाली बात ये है की चीन,महाचीन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के दो गांवों का ही प्राचीन नाम है......न की वर्तमान चीन से उसका कोई लेना देना है......इस पद्धिति में पंचमकारों को जोड़ा गया.......बस यहीं पञ्च मकार वो तत्व हैं जिनके कारण सात्विक पंथियों को शोर मचाने का अवसर मिल गया.....लेकिन ये उनकी सबसे बड़ी मूर्खता थी.....क्योंकि उनहोंने भी वास्तविकता से मुह मोड़ लिया......वास्तविकता तो ये थी की हिमाचल......उत्तराँचल......जम्मू कश्मीर.....नेपाल....तिब्बत के बड़े हिस्सों में भयंकर हिमपात होता था.....वहां छः से सात महीनो तक बर्फ गिरी रहती थी.....जिसकारण हरियाली का एक भी पत्ता तक नहीं होता था.....ऐसे में इन क्षेत्रों के लोगो ने एक आसान सा उपाय खोज निकाला और वो था की भेड़ बकरियों को मार कर उनके मांस पर जीवित रहना....और कड़ी ठण्ड और सख्त हवाओं से बचने के लिए आयुर्वेद के कथनानुसार हलकी मदिरा को औषधि के रूप में लेना....जो तब से ले कर आज तक इन क्षेत्रों में प्रचलित है.....यहाँ के बच्चे...महिलाएं....युवा.....वृद्ध....सभी सामान रूप से माँसाहारी हैं और मदिरा का सेवन भी करते हैं.....और तो और पवित्री करण तथा पूजा के लिए भी मदिरा का ही प्रयोग होता है....क्योंकि भैरवी साधिका अपरा भैरवी इन्हीं क्षेत्रों की रहने वाली थी इस लिए लोगों ने कहानियों में जोड़ दिया की भैरवी मांस खाती है.....भैरवी मदिरा पीती है

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