Hindi, asked by PrachiC, 11 months ago

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1. "पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं' 'चिड़िया की बच्ची' पाठ के आधार पर लिखिए कि यदि सारी सुविधाएँ देकर एक
कमरे में आपको कुछ दिन बंद रहने को कहा जाए तो क्या आप स्वीकार करेंगे? आपके लिए अधिक प्रिय क्या है?
–'स्वाधीनता' या प्रलोभनोवाली पराधीनता? 150 शब्दों से लेकर 200 शब्दों के बीच अनुच्छेद लिखें।​

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Answered by pathakshobha300033
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पराधीन सपनेहु सुख नाहीं इस दोहे से श्री तुलसीदास जी कहना चाहते हैं कि वह व्यक्ति जो दूसरों पर निर्भर रहता है उसे सपने में भी सुख नहीं मिलता पराधीन व्यक्ति मृत व्यक्ति के समान हैं उसे स्वजनों से कभी भी सुख नहीं मिलता। एक व्यक्ति के लिए पराधीनता एक अभिशाप के जैसा है पराधीन व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में सुख नहीं मिलता। अगर व्यक्ति के पास सभी सुख सुविधाएं हैं और फिर भी वह स्वतंत्र नहीं हैं तो उस व्यक्ति के लिए यह सब कुछ व्यर्थ है। पराधीनता मनुष्य के लिए कष्टदायक माने गए हैं। पराधीनता को इस जग में पाप माना गया है तथा स्वाधीनता को पुण्य माना गया। पराधीनता के लिए कुछ लोग भगवान को दोष देते हैं तो कुछ अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं लेकिन ऐसा नहीं है इसके लिए व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेवार होता है। भगवान केवल उन्हीं का साथ देता है जो अपनी मदद खुद कर सकते हैं । पराधीन व्यक्ति के साथ सदा ही शोषण किया जाता है मनुष्य तो क्या पराधीनता में पशु-पक्षी भी खुश नहीं रहते हैं। पराधीनता की कहानी किसी यह मनुष्य जाति या देश के लिए एक दुख की कहानी होती हैं, पराधीन व्यक्ति का स्वामी जैसा भी व्यवहार चाहे वैसा व्यवहार प्राचीन व्यक्ति के साथ कर सकते हैं चाहे वह व्यवहार उस व्यक्ति को अच्छा लगे या बुरा। पराधीन व्यक्ति कभी भी अपने आत्मसम्मान की रक्षा नहीं कर पाते हैं जो सुख एक स्वतंत्र व्यक्ति महसूस कर सकता है वह सुख कभी भी पराधीन मनुष्य महसूस नहीं कर पाते , हितोपदेश में भी कहा गया है कि पराधीन मनुष्य मृत के समान है। प्रत्येक मनुष्य अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वतंत्र रहना चाहता है वह कभी भी किसी भी क्षेत्र में किसी से बंधा हुआ यह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता। एक स्वतंत्रता सेनानी ने कहा था की स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस मनुष्य को स्वतंत्रता अधिक प्रिय हैं वह स्वाधीन है और उसे किसी कारणवश किसी के पराधीन लाना पड़ता है तो वह मनुष्य अपनी स्वतंत्रता को पाने के लिए कुछ भी कर सकता है यहां तक की वह अपनी जान भी दे सकता है। पराधीन मनुष्य सोने के पिंजरे में बंद उस पक्षी की तरह होता है जिसे सभी सुख सुविधाएं हैं फिर भी वह सुखी नहीं है उसे बहुत सारे व्यंजन खाने को मिल रहे हैं फिर भी उसे स्वच्छंद पेड़ से बैठकर फल खाने में जो खुशी मिलती हैं वह खुशी उसे नहीं मिल रही है स्वतंत्रता में कड़वी बिनौरी भी मीठी लगने लगती हैं और वही पराधीनता में मीठे फल भी कड़वे लगते हैं। अधीनता एक व्यक्ति एक परिवार एक देश की हो सकती हैं और वह व्यक्ति व देश और परिवार कभी भी खुश नहीं रखता पराधीन व्यक्ति कहीं भी कभी भी अपमानित होता है इसलिए हमें हर हाल में पराधीनता को त्याग स्वाधीनता में जीना चाहिए हमें किसी भी हाल में स्वतंत्र रहना चाहिए।

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