Hindi, asked by ArjunYadav, 1 year ago

hindi asl on adhunikta aur bhartiya sanskriti

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Answered by KUPII
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हिन्दी की साहित्यिक संस्कृति और भारतीय आधुनिकता हिन्दी की आधुनिक संस्कृति का विकास भारतीय सभ्यता को एक आधुनिक औद्योगिक राष्ट्र में रूपान्तरित कर देने के वृहत् अभियान के हिस्से के रूप में हुआ। इस प्रक्रिया में गांधी जैसे चिन्तकों के विचारों की अनदेखी तो की ही गई, मार्क्स के चिन्तन को भी बहुत ही सपाट और यान्त्रिक ढंग से समझने और लागू करने का प्रयास किया गया। यह पुस्तक गांधी और मार्क्स का एक नया भाष्य ही नहीं प्रस्तुत करती, बल्कि भारतीय आधुनिकता की विलक्षणताओं को भी रेखांकित करने का उपक्रम करती है। आधुनिकता की परियोजना के संकटग्रस्त हो जाने और उत्तरआधुनिक-उत्तरऔपनिवेशिक चिन्तकों द्वारा उसकी विडम्बनाओं को उजागर कर दिए जाने के उपरान्त गांधी और मार्क्स का गैर पश्चिमी समाज के परिप्रेक्ष्य में पुनर्पाठ एक राजनीतिक और रणनीतिक जरूरत है। इस जरूरत का एहसास भारतीय और पश्चिमी समाज वैज्ञानिकों के लेखन में इन दिनों बहुत शिद्दत से उभर कर आ रहा है। विडम्बना ये है कि हिन्दी की दुनिया ने अभी भी इस प्रकार के चिन्तन को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। इस दृष्टि से विचार करने पर आधुनिकता के साथ पूँजीवाद, उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद, विज्ञान, तर्कबुद्धि और लोकतंत्र का वैसा सम्बन्ध गैर पश्चिमी सभ्यताओं के साथ नहीं बनता है, जैसा पश्चिमी सभ्यताओं के साथ दिखाई पड़ता है। इस बात का एहसास गांधी को ही नहीं, हिन्दी नवजागरण के यशस्वी लेखक प्रेमचन्द को भी था। यह अकारण नहीं है कि प्रेमचन्द ने आधुनिकता से जुड़े हुए राष्ट्रवाद समेत सभी अनुषंगों की तीखी आलोचना की और उसके विकल्प के रूप में कृषक संस्कृति, देशज कौशल, शिक्षा और न्याय-व्यवस्था के महत्त्व पर जोर दिया। देशज ज्ञान को महत्त्व देने वाला व्यक्ति ज्ञान के स्रोत के रूप में सिर्फ अंग्रेजी के महात्म्य को स्वीकार नहीं कर सकता था। इसलिए गांधी और प्रेमचन्द ने हिन्दी और भारतीय भाषाओं के उत्थान पर इतना जोर दिया। लेकिन, हिन्दी की साहित्यिक संस्कृति के अधिकांश में, भारतीय भाषाओं की अस्मिता और उनके साहित्य का अध्ययन भी यूरोपीय राष्ट्रों के साहित्य के वजन पर किया गया। आधुनिक साहित्यिक विधाओं का चुनाव और विकास भी बहुत कुछ पश्चिमी देशों के साहित्य के निकष पर हुआँ यह सब हुआ जातीय साहित्य और जातीय परम्परा का ढिंढोरा पीटने के बावजूद। यह पुस्तक साहित्य के इतिहास-अध्ययन की इस प्रवृत्ति और साहित्यिक विधाओं के विकास की सीमाओं और विडम्बनाओं को भी अपनी चिन्ता का विषय बनाती है और सही मायने में अपनी जातीय साहित्यिक-सांस्कृतिक परम्परा को एक उच्चतर सर्जनात्मक स्तर पर पुनराविष्कृत करने की विचारोत्तेजक पेशकश करती है।
Answered by swapnil756
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नमस्कार दोस्त
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परंपरा एक सीमा से अगली पीढ़ी तक की सीमा, विश्वास और सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाती है। इसकी उत्पत्ति अतीत में है

आधुनिकता समकालीन व्यवहार या काम करने का तरीका है। यह ताज़ा, नया और आधुनिक है

परंपरा और आधुनिकता दोनों ने भारत में साइड-बाय-साइड हासिल किया है। भारतीय संस्कृति पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक भावनाओं का मिश्रण है।

आधुनिकता भारत में पूरी तरह से नई नहीं है यह सौ सौ साल से अधिक है और इस अवधि के दौरान स्थिर प्रगति कर रही है।

हिंदू परंपरा ही एकरूप नहीं है, क्योंकि इसके कई प्रवक्ता और आलोचक अक्सर मानते हैं। यह सच है कि कुछ हिंदू परंपरा आधुनिक भावना के साथ अंतर्निहित असंगत हैं। प्राचीन भारत में, विशेष रूप से रिग वैदिक सोसाइटी की अवधि के दौरान, भारतीय समाज बाद में हिंदू धर्म के अधिकांश हिंसा से मुक्त था।
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आशा है कि यह आपकी सहायता करता है
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