Hindi Bakri natak Ki prasangikta per vichar kijiye?
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उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ,
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ?
युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से,
अब रोष के मारे हुए, वे दहकते अंगार-से ।
निश्चय अरुणिमा-मित्त अनल की जल उठी वह ज्वाल सी,
तब तो दृगों का जल गया शोकाश्रु जल तत्काल ही।
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करुंगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।
अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है,
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है,
उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है,
उन्मुक्त बस उसके लिये रौ'र'व नरक का द्वार है।
उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है,
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है ।
अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं,
तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं।
अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही,
साक्षी रहे सुन ये वचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही।
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ,
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ।
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Answer:
सिटी रिपोर्टर | आरा
नवांकुर संस्था के बैनर तले नागरी प्रचारिणी सभागार में दो दिवसीय ‘बकरी’ शीर्षक नाटक का मंचन शुरू हुआ। केंद्र सरकार के कला व संस्कृति मंत्रालय के सौजन्य से हो रहे इस कार्यक्रम का उद्घाटन राजनीतिक कार्यकर्ता ध्रुव नारायण मिश्रा, वरिष्ठ कवि व कथाकार जितेन्द्र कुमार, वरिष्ठ राम निहाल गुंजन, वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीधर शर्मा और युवा रंगकर्मी मनोज सिंह ने संयुक्त रूप से किया। मौके पर ध्रुव नारायण मिश्रा ने कहा कि यह नाटक आज के समय में काफी लोकप्रिय व जनप्रिय है। आज के मौजूद हालात को रेखांकित करता है। आज गाय को मोहरा बनाकर हिन्दु, मुस्लिम को लड़ाने की कोशिश की जा रही है। इस नाटक के माध्यम से इस साजिश को समझा जा सकता है।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के चर्चित नाटक बकरी नाटक के माध्यम से दिखाया गया है कि डकैत प्रवृति के तीन युवक दुर्जन सिंह, कर्मवीर व सत्यवीर अपने पुराने धंधा को छोड़कर ठगी करने की योजना बनाते है। अपनी योजना के अनुसार गांव के दलित की बकरी को दीवान द्वारा चोरी करवा देते हंै। साथ ही गांव के भोली-भाली जनता से गांधी जी के बकरी के नाम पर दान लेना शुरू कर देते हैं। अशिक्षा के खिलाफ शिक्षा की अलख जगाने का काम यह नाटक कर रहा है। नाटक के निर्देशक परिकल्पना व संगीत निर्देशक युवा रंगकर्मी-निर्देशक राजू कुमार रंजन थे। विभिन्न भूमिकाओं में सुहानी राज, अमन राज, अमीत मेहता, अमरजीत, सूर्यप्रकाश, देवांश ओझा, अमृक सिंह निब्रान, शुभम दुबे, डॉली सोनी, राजनंदनी कुमारी, अंकित कुमार, आलाेक रंजन, आकृति सोनी, अमित कुमार ने सराहनीय अभिनय किया। मंच सज्जा रवि पटेल व अनिल कुमार और प्रकाश परिकल्पना रवि वर्मा व राजकपूर की थी। सहयोगी में दीप्ति कुमारी व मणि थी। संगीत में नगाड़ा पर युगल पासवान, हारमोनियम पर राजा बसंत बहार और नाल पर सियाराम थे।
मंच संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी सत्यदेव कुमार ने किया। मौके पर संजय कुमार पाल, कमलेश कुंदन, शब्बीर कुमार, कृष्णेन्दु, अशोक मानव, सुधीर शर्मा समेत अन्य लोग मौजूद थे।
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