Hindi, asked by itsmenavya2007, 25 days ago

hindi bhasha ke prati abhiruchi essay​

Answers

Answered by ajitboraik659
2

Explanation:

HEY DUDE

IT IS YOUR ANSWER

Attachments:
Answered by ms8367786
1

Explanation:

मातृभाषा के प्रति हमारी अभिरुचि

देश का विकास और राष्ट्रीय चरित्र मातृभाषा में सुरक्षित है। इस संबंध में महापुरुषों ने मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया है। स्वामी दयानंद, विवेकानंद, तिलक, मालवीय जी ने ही नहीं विदेशी विद्वान मैक्समूलर ने भी हिंदी की तारीफ के पुल बाँधे। जापान, चीन, रूस जैसे प्रगतिमान देशों ने भी अपनी मातृभाषा को महत्व दिया है और निरंतर प्रगतिमान हैं। न जाने क्यों, भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ के निवासियों को अपना कुछ अच्छा नहीं लगता, अपितु उन्हें विदेशी वस्तुएँ अच्छी लगती हैं। उनकी संस्कृति आकर्षित करती है। इतना ही नहीं, विदेशी वस्तुओं को अपनाकर भारतीय गौरवान्वित महसूस करने लगे हैं।

अपनी सहज सरल भाषा के प्रति घटती रुचि उनके इस सोच का ही कारण है। जिस समय देश स्वतंत्र हुआ उस समय लोगों में अपनी मातृभाषा के लिए अच्छी भावना थी इसलिए हिंदी के विकास के लिए राष्ट्रीय-स्तर पर प्रयास किए गए। मातृभाषा के सुधार के लिए नीतियाँ बनाई गई कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगी। ताकि अंग्रेजी ज्ञान के बिना परेशानी नहीं होगी। अहिंदी भाषी प्रदेशों की आशंकाएँ देखते हुए त्रिभाषा पर आधारित राष्ट्रीय नीति बनाई गई।

जिसको समुचित रूप से न अपनाने पर भाषाओं के विकास की बात दुलमुल नीति में छिप गई। इस दुलमुल नीति से अंग्रेजी भाषा के प्रति राज्यों की रुचि बढ़ी। सुविज्ञजनों ने विचार दिए कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए और राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के महत्व को बनाए रखने के लिए हिंदी का ज्ञान देना अनिवार्य होना चाहिए। अहिंदी प्रदेशों में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी का अध्ययन होना चाहिए। प्राथमिक विद्यालय के बाद अंग्रेजी भाषा के अध्ययन का प्रावधान हो। इसके प्रयास हुए, किंतु समुचित प्रयास न होने के कारण अंग्रेजी अपना वर्चस्व स्थापित करती गई। सुविज्ञों ने योजनाएँ बनाई थीं उसके प्रति सजगता और ईमानदारी से कार्य किया जाता तो आज हिंदी या अन्य मातृभाषाओं की ऐसी दुर्दशा न होती।

अंग्रेजी का ज्ञान न रखने वाले शिक्षित लोग स्वयं को हेय समझने लगे। लोगों के मन में यह भाव पनपने लगा कि वैश्वीकरण के कारण अंग्रेजी का ज्ञान ही उनकी प्रगति में सहायक हो सकता है। इतना दम-खम अन्य भाषाओं में नहीं है। इसी विचारधारा ने पब्लिक स्कूलों को हवा दी। पब्लिक स्कूलों की संख्या बढ़ी, इतनी बढ़ी कि कई गुनी हो गई। इन स्कूलों में संपन्न परिवारों के बच्चे प्रवेश पाने लगे। इन्हें उच्च-शिक्षा अर्थात् उत्तम शिक्षा का केंद्र मानकर सामान्य जन भी येन-केन प्रकारेण इन्हीं स्कूलों में अपने बच्चे भेजने का प्रयास करने लगे। इस प्रकार पब्लिक स्कूल बढ़ते गए, सरकारें भी अंग्रेजी के वर्चस्व को नकार न सकी। प्रतिवर्ष करोड़पति लोगों की संख्या भी बढ़ी और उन्हें लुभाने के लिए इन स्कूलों ने लुभावने आकर्षण दिखाए।

सरकारी स्कूलों में केवल अति सामान्य परिवार के बच्चे पढ़ने के लिए विवश और तड़प कर रह गए। पब्लिक स्कूलों के प्रति आकर्षण को देख दूर-दराज के क्षेत्रों में पब्लिक स्कूल खुल गए, जिनमें हिंदी भाषा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इस तरह हिंदी या अन्य मातृभाषाओं की दुर्दशा होती गई। जब उच्च-शिक्षा प्राप्त युवक अपनी डिग्रियों को लेकर नौकरी के लिए कपनियों के द्वार पर दस्तक देता है तो अंग्रेजी के ज्ञान बिना उसके सपने चूर-चूर हो जाते हैं। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर चतुर लोगों ने अंग्रेजी सिखाने के लिए संस्थान खोले और अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व से परिचय कराया। इससे अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ता गया और अपनी भाषा के प्रति रुचि घटती गई।

Similar questions