Hindi, asked by krishnaghanshyamsing, 1 year ago

hindi bhasha ke vipaksh me (for debate)

Answers

Answered by sukritidehloo
26

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान लार्ड मैकाले द्वारा वर्ष 1835 में भारत में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की शुरू किए जाने के करीब 180 साल बाद 22 आधिकारिक भाषा और 350 बोलियों वाले देश में विदेशी भाषा कही जाने वाले अंग्रेजी की उपयुक्तता पर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों के चयन के लिए ली जाने वाली परीक्षा में हिस्सा लेने वाले अभ्यर्थियों द्वारा सिविल सर्विसेज एप्टीट्युड टेस्ट (सीसैट) को हटाए जाने की मांग उठने के बाद अंग्रेजी की उपयोगिता पर बहस तेज हो गई है. परीक्षार्थियों के अनुसार गैर अंग्रेजी भाषी अभ्यर्थियों के लिए आयोग की परीक्षा का यह अंश लाभदायक नहीं है.

केंद्र सरकार ने हालांकि, चार अगस्त को सीसैट परीक्षा के तहत अंग्रेजी भाषा कौशल जांच के अंक को अंतिम मेधा सूची में शामिल नहीं करने का फैसला लिया, लेकिन प्रदर्शनकारी इससे संतुष्ट नहीं हैं और कई का मानना है कि अंग्रेजी के खिलाफ विरोध अनुमान से कहीं ज्यादा तेज है.

पूर्व राजनयिक और लेखक पवन वर्मा कहते हैं कि अंग्रेजी सामाजिक समावेश की भाषा नहीं है.

वर्मा ने आईएएनएस से कहा, 'अंग्रेजी भारतीय भाषा है और मेरा मानना है कि यह कभी सामाजिक समावेश की भाषा नहीं हो सकती। इसने साहित्यिक श्रेणी तैयार की है, किसी खास वाकपटुता और उच्चारण वाले व्यक्ति को ज्यादा महत्व मिलता है.'

मैकाले ने अंग्रेजी भाषा को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा था कि इसका मकसद भारतीयों की ऐसी पीढ़ी तैयार करना है जो कि खून और रंग से भारतीय हों, लेकिन पसंद, आचार-विचार, बुद्धिमत्ता और राय से अंग्रेज हों.

वर्मा ने कहा, 'कोई भी अंग्रेजी भाषा के महत्व को नहीं अस्वीकार रहा, लेकिन हम ऐसे किसी व्यक्ति के लिए इसे अवरोधक नहीं बनने दे सकते, जिनका अंग्रेजी ज्ञान सीमित है या उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाई नहीं की है.'

राजनीतिक विश्लेषक प्रणंजय गुहा ठाकुराता अभ्यर्थियों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए अंग्रेजी भाषा को 'औपनिवेशिक खुमारी' करार देते हैं.

ठाकुराता ने आईएएनएस से कहा, 'मुझे लगता है कि मौजूदा प्रदर्शन सही है. यह सिर्फ यूपीएससी के बारे में नहीं है। जिस तरह से हम विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं में चयन करते हैं वे पूरी तरह से औपनिवेशिक खुमारी को दर्शाता है.

वह यह भी कहते हैं कि इससे वर्ग विभाजन पैदा होता है.

ठाकुराता कहते हैं, 'अंग्रेजी लिखना और पढ़ना वर्ग विभाजन दिखाता है. यह दिखाता है कि ऐसा बोलने वाले अमीर होते हैं। उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी दैनिक, ज्यादा पाठक संख्या वाले हिंदी दैनिक के मुकाबले ज्यादा विज्ञापन पाता है. यह इसलिए क्योंकि विज्ञापनदाता अंग्रेजी पाठक को अमीर मानते हैं.'

कांग्रेस का छात्र संघ एनएसयूआई के प्रवक्ता अमरीश पांडे कहते है कि अंग्रेजी के प्रभुत्व ने हिंदी माध्यम के छात्र-छात्राओं के साथ भेदभाव किया है.

पांडे ने आईएएनएस से कहा, 'मैं निजी रूप से मानता हूं कि हमारे समाज की यह मानसिकता है कि अगर कोई हिंदी माध्यम के संस्थान में पढ़ा है, वह कमतर माना जाता है, यह समाज की समस्या है.'

इधर, संसदीय कार्य मंत्री एम.वेंकैया नायडू ने गुरुवार को प्रदर्शनकारियों से 24 अगस्त को यूपीएससी की होने वाली परीक्षा तक इंतजार करने के लिए कहा है. उन्होंने इसके साथ ही यह कहा है कि वह सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श करेंगे.

हालांकि, दक्षिण भारतीय लोगों की राय इसको लेकर बिल्कुल अलग है.

चेन्नई में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक और लेखक एम.एस.एस. पांडियन कहते हैं कि हिंदी और अंग्रेजी के बीच अंतर बनाया गया है और उन्होंने हिंदी प्रदेशों के नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया.

पांडियन ने आईएएनएस से कहा, 'अंग्रेजी और हिंदी के बीच का माहौल हिंदी प्रदेशों के नेताओं ने तैयार किया है, जिन्होंने दोनों भाषाओं के बीच समतुल्यता न बना कर हिंदी प्रदेशों के बच्चों के अंग्रेजी भाषा में निपुण होने की संभावना को क्षीण कर दिया है.'

Answered by Priatouri
15

राम: आओ, श्याम तुम्हें हिंदी में एक कविता सुनाएं I

श्याम: नहीं ! मुझे तुम्हारी हिंदी में कोई दिलचस्पी नहीं है I

राम: ऐसा क्यों ? तुम्हें पता है हिंदी हमारी मातृभाषा है I यह देश के रूप से राज्य में बोली जाती है I

श्याम: बोली जाती होगी लेकिन विश्व के बहुत ही कम देशों में बोली जाने वाली भाषा है I

राम: तुम हिंदी भाषा के विरुद्ध क्यों हो ?

श्याम: क्योंकि हिंदी भाषा से किसी का कोई विकास संभव नहीं है I

राम: ऐसा नहीं है I तुम केवल एक पहलू को देख रहे हो I

श्याम: ऐसा ही है I हिंदी बोलने वाली लोग दूसरे भाषा जैसे कि अंग्रेजी नहीं सीख पाते हैं I हिंदी भाषी लोगों को दूसरे लोग दूसरी भाषा के लोग दया की दृष्टि से देखते हैं I हिंदी भाषा हिन्दीभाषी लोगों में आत्मविश्वास की बहुत कमी होती है इसलिए मुझे हिंदी भाषा कतई पसंद नहीं है I

राम: यह तुम्हारा अपना मत है किंतु यह सही नहीं है I

श्याम: जो भी हो I मुझे तुम्हारी कविता में रुचि नहीं हैI

Similar questions