hindi cinema ki bolne ki kahani ko apne shabdo mein likhe
Answers
Explanation:
‘वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान ज़िंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ देश की पहली सवाक् फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं।
सजीव – ज़िंदा
इंसान – मानव
सवाक् – बोलती
लेखक यहाँ पर देश की पहली बोलने वाली फिल्म का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब देश की पहली बोलने वाली फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित होने वाली थी तो शहर भर में उसके पोस्टरों में कुछ इस तरह की पंक्तियाँ लिखी हुई थी कि – ‘वे सभी जिन्दा हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा मानव ज़िंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ इन पंक्तियों का अर्थ था कि फिल्म में जितने भी पात्र हैं वह सब जीवित नजर आ रहे हैं, सभी उनको बोलते, बातें करते देख सकते हैं, इस तरह का विज्ञापन तैयार करके लोगों को फिल्म को देखने के लिए आकर्षित किया गया था और यह ‘आलम आरा’ फिल्म का सबसे पहला पोस्टर था।
14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।
लोकप्रियता – प्रसिद्धि
शिखर – उच्च स्थान
14 मार्च 1931 यह भारतीय सिनेमा के लिए एक ऐतिहासिक तारीख बन गई, इस तारीख में भारतीय सिनेमा जगत में एक बहुत बड़ा बदलाव आया। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा में बोलने वाली फिल्म का प्रदर्शन हुआ था। परन्तु यह, वह समय था जब लोगों के द्वारा मूक सिनेमा को बहुत अधिक पसंद किया जाता था। मूक सिनेमा की भी अपनी एक प्रसिद्धि थी, उसका अपना एक अलग स्थान था।
‘पहली बोलती फिल्म जिस साल प्रदर्शित हुई, उसी साल कई मूक फिल्में भी विभिन्न भाषाओं में बनीं। मगर बोलती फिल्मों का नया दौर शुरू हो गया था।
फिल्में – बिना आवाज़ की फिल्म
दौर – समय
जिस साल पहली बोलती फिल्म को पर्दे पर उतारा गया था उसी साल कई मूक फिल्में भी विभिन्न भाषाओं में बनीं हुई थी। लेखक के कहने का अभिप्राय है कि ऐसा नहीं है कि एक दम से मूक फिल्में बनना बंद हो चुकी थी, सवाक् फिल्म के आ जाने पर भी कई अलग-अगल भाषाओं में अभी-भी मूक फिल्में बन रही थी। परन्तु अब बोलती फिल्मों का नया समाय शुरू हो गया था। अब एक नई तकनीकी आ गई थी, जिसकर कारण फिल्म निर्माता आवाज को फिल्मों में शामिल कर सकते थे।
पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनाने वाले फिल्मकार थे अर्देशिर एम. ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी।