Hindi debate on swachata
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महोदय, महोदया और मेरे प्यारे मित्रों को सुप्रभात। मेरा नाम........है। मैं कक्षा.......में पढ़ता/पढ़ती हूँ। आज में स्वच्छता पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। मैनें यह विषय विशेषरुप से हमारे दैनिक जीवन में इसके बहुत अधिक महत्व के कारण चुना है। वास्तव में, स्वच्छता का वास्तविक अर्थ घरों, कार्यस्थलों या हमारे चारों के वातवरण से गंदगी, धूल, मलिनता और गंदी बदबू की पूरी तरह से अनुपस्थिति से है। स्वच्छता बनाये रखने का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य, सुन्दरता, को बनाये रखना आपत्तिजनक गंध को दूर करने के साथ ही गंदगी और मलिनता के प्रसार से बचना है। हम ताजगी और स्वच्छता को प्राप्त करने के लिए अपने दातों, कपड़ों, शरीर, बालों को दैनिक आधार पर साफ करते हैं।
स्वच्छता
हम विभिन्न वस्तुओं को साफ करने के लिए विभिन्न प्रकार के उत्पादकों और पानी का प्रयोग करते हैं। जैसा की हमने स्वंय अपनी आँखों से देखा है कि साफ-सफाई गंदगी और बदबू को हटाने में मदद करती है। हालांकि, जो हमने स्वंय अपनी आँखों से नहीं देखा वो तथ्य है कि यह वस्तुओं से हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं (जैसे बैक्ट्रीरिया, वायरस, फफूंद, कवक, शैवाल आदि) को हटाने में भी सहायक है। यह हमें स्वस्थ्य रखती है और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से दूर रखती है जो हानिकारक जीवाणुओं से फैलती हैं। रोग के रोगाणु सिद्धांत के अनुसार, स्वच्छता से आशय कीटाणुओं की पूरी तरह अनुपस्थिति है। कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में, विशेष स्वच्छता की आवश्यकता है जो विशेषरुप से साफ कमरों में ही प्राप्त की जा सकती है। गंदगी और बदबू की उपस्थिति से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की शक्ति कम हो सकती है।
सामान्यतः दो तरह की स्वच्छता होती है, पहली शारीरिक स्वच्छता और दूसरी आन्तरिक स्वच्छता। शारीरिक स्वच्छता हमें बाहर से साफ रखती है और हमें आत्मविश्वास के साथ अच्छा होने का अनुभव कराती है। मगर, आन्तरिक स्वच्छता हमें मानसिक शान्ति प्रदान करती है और चिंताओं से दूर करती है। आन्तरिक स्वच्छता से आशय मस्तिष्क में गंदी, बुरी और नकारात्मक सोच की अनुपस्थिति से है। हृदय, शरीर और मस्तिष्क को साफ और शान्तिपूर्ण रखना ही पूरी स्वच्छता है। फिर भी, हमें अपने चारों के माहौल को भी साफ रखने की आवश्यकता है ताकि हम साफ और स्वस्थ्य वातावरण में रह सकें। यह महामारी वाले रोगों से दूर रखने और हमें सामाजिक हित की भावना प्रदान करेगी।
यह बहुत पुरानी कहावत है कि “स्वच्छता, भक्ति से भी बढ़कर है”। यह जॉन वैस्ले द्वारा बिल्कुल सही कहा गया है। स्वच्छता को, सभी घरों में बचपन से ही प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि ये छोटे बच्चों के बचपन के अभ्यास से आदत बन जाये और सभी के लिए पूरे जीवन भर लाभकारी रहे। स्वच्छता उस अच्छी आदत की तरह है, जो न केवल एक व्यक्ति को लाभ पहुँचाती है, बल्कि, यह एक परिवार, समाज और देश को भी और इस प्रकार पूरे ग्रह को लाभ पहुँचाती है। इसे किसी भी आयु में विकसित किया जा सकता है हालांकि, बचपन से अभ्यास में रहना सबसे अच्छा है। एक बच्चे के रुप में, मैं सभी माता-पिता से अनुरोध करता/करती हूँ कि, वो अपने बच्चों में इस आदत का अभ्यास कराये क्योंकि वो आप ही जो इस देश को अच्छे नागरिक दे सकते हो।
धन्यवाद।
स्वच्छता ही सबसे बड़ी पहचान है।