Hindi, asked by sunnyabv, 1 year ago

hindi doha written by kabir das

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Answered by hariharan14
5
i gave u 5 so give me hifi
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sunnyabv: thnx sir it help me a lot
Answered by mpssankar
0

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1. साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।

   सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।

2. जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।

   ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।

3. पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

    अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

4. जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

    सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकारमैं था, तब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास है तो मैंअहंकार नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।

5. नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।

    मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।

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