Hindi, asked by rini4, 1 year ago

hindi eassy parishram hi safalta ka adhar he

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Answered by maroon5
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कड़ी मेहनत सफलता की कुंजी है यह एक प्रसिद्ध कहावत है जो हम अपने बचपन से सुनते आये हैं। हमारे माता-पिता, शिक्षक सभी हमें कड़ी मेहनत करने के लिए निर्देशित करते हैं ताकि हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें। हालांकि भाग्य एक सकारात्मक भूमिका निभाता है लेकिन वास्तव में परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। अगर हम केवल भाग्य के भरोसे रहेगे तो कभी भी सफल नहीं होंगे।

आज के समय में जहाँ तकनीक इतनी बढ़ गयी हैं वही लोगो की परिश्रम करने के शक्ति व जरूरत में कमी आई है। परन्तु हमें यह याद रखना चाहिए की अगर राइट बंधु और हेनरी फोर्ड जैसे लोगों कठोर परिश्रम कर इन साधनों का आविष्कार न करते या डी-डे के इंतजार में बैठे रहते तो शायद आज हम बिजली के ओवन का उपयोग करने के बजाय आग और लकड़ी का उपयोग ही कर रहे होते। कड़ी मेहनत से ही एक व्यक्ति अपने करियर को श्रेष्ठ बना सकता हैं। जब लोग जीवन में कामयाब होते हैं, तो यह कड़ी मेहनत के कारण ही संभव होता है।
जीवन में हमें सफलता के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष के लिए कड़ी मेहनत अनिवार्य है। कड़ी मेहनत के बिना और बस बेकार बैठकर, सफलता प्राप्त करना मुश्किल होगा। बचपन से ही मेरे माता-पिता कहते थे कि “जीवन में बेहतर व्यक्ति बनने के लिए और सफलता पाने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी है, कड़ी मेहनत का परिणाम हमेशा फायदेमंद होता है, कड़ी मेहनत कभी भी व्यर्थ नहीं होती है, इसलिए परिश्रम करो”। सच यही हैं की एक परिश्रमी व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करता हैं. जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठ जाता हैं उन्हें कभी भी सफलता का सुख प्राप्त नहीं होता। इसलिये मेहनत से कभी भी मत डरो क्यूंकि “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है”.(kunji means adhar)
Answered by AdarshThakur357
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परिश्रम चाबी है जिसके द्वारा मनुष्य किसी सफलता का ताला खोल सकता है परिश्रम का मनुष्य के लिए वही महत्व है जो उसके लिए खाने और सोने का है । बिना परिश्रम का जीवन व्यर्थ होता है क्योंकि प्रकृति द्‌वारा दिए गए संसाधनों का उपयोग वही कर सकता है जो परिश्रम पर विश्वास करता है ।

परिश्रम अथवा कर्म का महत्व श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को गीता के उपदेश द्‌वारा समझाया था । उनके अनुसार:

”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन: ।”

परिश्रम अथवा कार्य ही मनुष्य की वास्तविक पूजा-अर्चना है । इस पूजा के बिना मनुष्य का सुखी-समृद्‌ध होना अत्यंत कठिन है । वह व्यक्ति जो परिश्रम से दूर रहता है अर्थात् कर्महीन, आलसी व्यक्ति सदैव दु:खी व दूसरों पर निर्भर रहने वाला होता है।

परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म के द्‌वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं । उन्हें जिस वस्तु की आकांक्षा होती है उसे पाने के लिए रास्ता चुनते हैं । ऐसे व्यक्ति मुश्किलों व संकटों के आने से भयभीत नहीं होते अपितु उस संकट के निदान का हल ढूँढ़ते हैं। अपनी कमियों के लिए वे दूसरों पर लांछन या दोषारोपण नहीं करते ।

दूसरी ओर कर्महीन अथवा आलसी व्यक्ति सदैव भाग्य पर निर्भर होते हैं । अपनी कमियों व दोषों के निदान के लिए प्रयास न कर वह भाग्य का दोष मानते हैं । उसके अनुसार जीवन में उन्हें जो कुछ भी मिल रहा है या फिर जो भी उनकी उपलब्धि से परे है उन सब में ईश्वर की इच्छा है । वह भाग्य के सहारे रहते हुए जीवन पर्यंत कर्म क्षेत्र से भागता रहता है । वह अपनी कल्पनाओं में ही सुख खोजता रहता है परंतु सुख किसी मृगतृष्णा की भाँति सदैव उससे दूर बना रहता है । “विश्वास करो,

यह सबसे बड़ा देवत्व है कि –

तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो

और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका ।”
भाग्य का सहारा वही लोग लेते हैं जो कर्महीन हैं । अत: हम सभी को परिश्रम के महत्व को स्वीकारना एवं समझना चाहिए तथा परिश्रम का मार्ग अपनाते हुए स्वयं का ही नहीं अपितु अपने देश और समाज के नाम को ऊँचाई पर ले जाना चाहिए ।




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