hindi essay aage kua peeche khai
Answers
सोमवार का दिन था । सुबह दस बजे वे अपने दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे थे । उन्हें क्या पता था कि आज कोई साधारण सोमवार नहीं था । आज उन्हें तरक्की मिलने वाली थी । दफ्तर में उनके लिए पार्टी रखी गई थी । खा-पीकर उन्होंने बहुत मज़ा किया । पूरा काम खत्म करके वे घर पर पहुँचे । घर में पहुँचते ही उनका फोन बज उठा । कोई प्रतिद्वंद्वी कम्पनी उन्हें अपनी कम्पनी में काम करने के लिए बुला रही थी । इस कम्पनी ने उन्हें बहुत पैसे और अच्छा पद देने का वादा किया । श्यामलाकांत जी फोन रखकर सोचने लगे," अगर मैं एक और कम्पनी के लिए काम करूँगा तो मेरे मालिक को अच्छा नहीं लगेगा.....पर...क्या करूँ? ......इतने पैसे!.....शायद मैं दोनों कम्पनी के लिए काम कर सकता हूँ .....दिन भर एक कम्पनी में और रात भर दूसरी कंपनी में .....किसी को कुछ पता नहीं चलेगा और मैं दुनिया में सबसे आदमी बन जाऊँगा।" बस यह सब सोचते ही उन्होंने प्रतिद्वंद्वी कंपनी को "हाँ" कहा । अगले दिन श्यामलाकांत उठकर जल्दी से अपनी कम्पनी में गए । वहाँ उन्होंने कुछ कार्य किया और शाम होते ही चले गए । सात बजे से दूसरी कंपनी में काम करने लगे । पूरा एक सप्ताह उन्होंने ऐसे ही बिताया । सप्ताह का अंत होने तक वे बहुत ही थक गए थे । बेचारे खाना खाने से पहले ही सो गए । शानिवार और रविवार को उन्होंने आराम किया । फिर सोमवार आ गया । एक कम्पनी में काम करके वे दूसरी कंपनी में काम करने गए । रात हो गई थी तभी उन्होंने देखा कि उनकी पहली कम्पनी का मालिक और दूसरी कम्पनी का मालिक एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं और झगड़ा कर रहे हैं । श्यामलाकांत जी ने चुपके से भागने की कोशिश की पर दोनों मालिकों की नज़रें एकाएक उन पर पड़ीं । दोनों ने उन्हें एक साथ प्रश्न किया कि वह किस कम्पनी के लिए काम कर रहा है? अब वे क्या करें? उनके लिए तो "आगे कुआँ पीछे खाई" वाली मुसीबत थी । अगर सच बताते तो दोनों ही नौकरियों से हाथ धोना पड़ता और चुप तो वह रह नहीं सकते थे क्योंकि उन्हें जवाब तो देना ही पड़ता ।
Prompt: hindi essay aage kua peeche khai
Answer: जीवन में कभी कभी ऐसी
परिस्थितियाँ आती हैं जब आगे कुआँ और पीछे खाई होती है। हम ऐसे संकट में पड़ जाते
हैं जिसमें से निकलना मुश्किल होता है। ऐसे समय पर कोई मित्र हमारी मदद कर सकता है।
इसके संबंध में एक कहानी है।
एक तालाब के पास एक मेढक और एक सांप रहते थे। मेढक का नाम था
हरिया और सांप का नाम रंगीला था। ऐसे मेढक और सांप एक दूसरे को नहीं पसंद करते
हैं। पर हरिया और रंगीला एक दूसरे के मित्र थे। हरिया टर्र टर्र बोलता था तो
रंगीला नाचता था। उन दोनों की मित्रता को देखकर सब खुश होते थे।
एक दिन एक सपेरा आया। वह रंगीला को पकड़कर ले जाना चाहता था और
लोगों को उसका नाच दिखाकर पैसे कमाना चाहता था। जब हरिया ने देखा कि उसके मित्र पर
मुसीबत आई है। उसने एक योजना बनाई।
जब सपेरा रंगीला को अपनी डलिया में बंद करके ले जाने लगा तो हरिया
भी उसमें कूद कर बैठ गया। काफी दूर जाने के बाद सपेरे ने डलिया को नीचे रखा और
आराम करने के लिए लेट गया।
हरिया जल्दी से कूदकर डलिया में से बाहर आया। पास में सपेरे की
पगड़ी पड़ी थी। हरिया उसके अंदर चला गया और कूदने लगा। कूदते कूदते वह सपेरे के
कन्धों पर चढ़ गया। सपेरा घबराकर उठा। वह अपनी पगड़ी को कूदते हुए देखकर डर गया।
हरिया सपेरे के ऊपर कूदता गया। सपेरा बहुत डर गया। वह समझा कि कोई नया जानवर उसको
काटने के लिए आया है।
वह जल्दी से उठा और दौड़ने लगा। वह दौड़ता गया। उसने पीछे मुड़कर भी
नहीं देखा। हरिया पगड़ी में से निकला और जाकर अपने मित्र रंगीला को डलिया में से
निकलने को कहा। दोनों बहुत खुश हुए और नाचते हुए वापस तालाब के पास आये। उनको
देखकर अन्य तालाब के वासी भी खुश हुए। सबने उनकी मित्रता के महत्व या श्रेष्ठता को
स्वीकार करा।