Hindi, asked by swetarajan, 1 year ago

hindi essay for the topic bharat ki shiksha vyavastha ​

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Answered by abhijitgupta2
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शिक्षा एक समाज की नींव होती है, जो कि एक मजबूत तथा समृद्ध देश का गठन करती है। परन्तु भारतीय शिक्षा व्यवस्था वास्तव में शिक्षा का परिहास है, इसमें बिना बदलाव के हम एक स्वस्थ, मानसिक तथा शारीरिक तौर पर स्थिर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। हमारी वर्तमान शिक्षा नीति, एक नैतिक तथा प्रतिभावान चरित्र के युवा पैदा करने में असफल है।

शिक्षा एक समाज की नींव होती है, जो कि एक मजबूत तथा समृद्ध देश का गठन करती है। परन्तु भारतीय शिक्षा व्यवस्था वास्तव में शिक्षा का परिहास है, इसमें बिना बदलाव के हम एक स्वस्थ, मानसिक तथा शारीरिक तौर पर स्थिर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। हमारी वर्तमान शिक्षा नीति, एक नैतिक तथा प्रतिभावान चरित्र के युवा पैदा करने में असफल है।तकनीकी महाविद्यालयो एवं संस्थानो में, तो विचित्र परिस्थिया हैं। हर साल हम लाखो इंजिनियर(अभियंता) पास करते हैं जिन से कुछ हजार भी इंजिनियर कहलाने के लायक नहीं हैं , और एक ध्यान देने योग्य संख्या जो की रचनात्मक होती है वो शिक्षकों के अहंकार, पक्षपात तथा शिक्षा नीति के जंजाल में फस जाते हैं और एक नगण्य संख्या ये सब पार कर के उतीर्ण होती है जो की सक्षम तथा रचनात्मक होती है ।

शिक्षा एक समाज की नींव होती है, जो कि एक मजबूत तथा समृद्ध देश का गठन करती है। परन्तु भारतीय शिक्षा व्यवस्था वास्तव में शिक्षा का परिहास है, इसमें बिना बदलाव के हम एक स्वस्थ, मानसिक तथा शारीरिक तौर पर स्थिर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। हमारी वर्तमान शिक्षा नीति, एक नैतिक तथा प्रतिभावान चरित्र के युवा पैदा करने में असफल है।तकनीकी महाविद्यालयो एवं संस्थानो में, तो विचित्र परिस्थिया हैं। हर साल हम लाखो इंजिनियर(अभियंता) पास करते हैं जिन से कुछ हजार भी इंजिनियर कहलाने के लायक नहीं हैं , और एक ध्यान देने योग्य संख्या जो की रचनात्मक होती है वो शिक्षकों के अहंकार, पक्षपात तथा शिक्षा नीति के जंजाल में फस जाते हैं और एक नगण्य संख्या ये सब पार कर के उतीर्ण होती है जो की सक्षम तथा रचनात्मक होती है ।हमारे देश में डिग्री प्राप्त करना बहुत ही आसान है, जिस कारण डिग्री का कोई मूल्य नहीं है । ज्यादातर शिक्षण संस्थान तथा महावियालय अपनी झूठी शान बनाने के लिए शिक्षा तथा नैतिकता का चीर-हरण कर रहे हैं , और एक व्यवसायिक संगठन की तरह पैसे बनाने में लगे हुए हैं और इसके लिए रोज़ नई नीतियां बना रहें हैं। इस कारण ये संस्थान, छात्रों के अन्दर तीव्र असंतोष और भौतिकता को जन्म दे रहे हैं । जो की छात्रों के अन्दर की नैतिकता तथा कर्तव्यपरायणता का संहार कर रही है। प्रतिस्पर्धा एक दूसरा ही रूप ले चुकी जिसमें छात्र अपने आप को श्रेस्ठ साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं, इसमें ईमानदारी तथा नैतिकता का कोई स्थान नहीं है , तथा प्रतियोगताओ के प्रबंधक अपने सवार्थ को निहित करने लगे रहते है।

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