hindi essay on basavanna
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बसवन्ना अपनी कविता के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाने वाले, जिसे वचानास के रूप में जाना जाता है बासवाना ने लिंग या सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वास और धार्मिक धागा पहने जैसे अनुष्ठानों को खारिज कर दिया, लेकिन शिव लिंगा की एक छवि के साथ, इशतांग का हार शुरू किया, हर व्यक्ति को उसके जन्म के बावजूद, किसी की भक्ति का एक सतत अनुस्मारक होना ( भक्ति) शिव को अपने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने नए सार्वजनिक संस्थान जैसे "अनुभूति मन्तपा" (या, "आध्यात्मिक अनुभव के हॉल") को पेश किया, जिसमें जीवन के आध्यात्मिक और सांसारिक प्रश्नों पर चर्चा करने के लिए सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से पुरुषों और महिलाओं का स्वागत किया गया। खुला।
पारंपरिक किंवदंतियों और हौगोग्राफिक ग्रंथों में बसवा को लिंगायत का संस्थापक बनाया गया है। हालांकि, आधुनिक साक्ष्य पर आधारित कावलुरी शिलालेख जैसे ऐतिहासिक साक्ष्यों पर भरोसा करते हुए कहा गया कि बसवा कवि दार्शनिक थे जिन्होंने पहले से ही मौजूदा परंपरा को पुनर्जीवित, परिष्कृत और सक्रिय किया था
बसवन्ना
संत बसवन्ना जिन्हें बसवेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, एक महान संत, कवि, धार्मिक नेता तथा समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में चल रही कुप्रथाओं तथा कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई।
इस महान व्यक्ति का जन्म सन 1131 में कर्नाटक राज्य के बीजापूर शहर के निकट इंगळेश्वर गाँव में ब्राह्मण कूल में हुआ था। उनके पिता का नाम मादरस था जो गाँव के प्रधान थे। तथा माता का नाम मादलाम्बिके था।
उस समय कर्नाटक समेत पूरा देश अंध विश्वास और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ था। बचपन से ही संत बसवन्ना अंध विश्वास तथा समाज में फैली विषमताओं से घृणा करते थे, इसीलिए केवल आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपने यज्ञोपवीत संस्कार का विरोध किया तथा जनेउ पहने से इनकार कर दिया और घर छोड़ दिया। उसके बाद कृष्णा और उसकी सहायक नदियाँ जहाँ मिलती हैं, वहाँ रहकर इन्होंने वेद तथा उपनिषदों और प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन किया।
राजा कालचूर्य के दरबार में बह खज़ाना मंत्री के रूप में कार्य करते थे। वहाँ उनका बड़ा सम्मान था। यही से उन्होंने समाज में प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और अनुभव मन्तप नामक संस्था की स्थापना की। संत होने पर भी वह शारीरिक श्रम को आवश्यक मानते थे। उनकी वाणी को "वचन" कहा जाता है। वचन-धर्मसार, भक्ति-भंडारी, धर्म-भंडारी, बसव-पुराण तथा शिवदास-गीतांजलि उनके कुछ वचन है।
संत बसवन्ना द्वारा 12 वीं सदी में लिंगायत धर्म की स्थापना की। पुरुष महिला असमानता मिटाना, जाति को हटाना, लोगों को शिक्षा प्रदान करना, और हर तरह का बुराई को रोकना इत्यादि इस धर्म का मुख्य उद्देश्य था।