Hindi essay on Bharat aur bhartiyata in 500 words
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आजकल के चर्चित सरोकारों में 'भारत' और 'भारतीयता' के सवाल प्रछन्न और प्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में खासी चर्चा का विषय बन चुके हैं और कई बड़े बुद्धिजीवी इस पर बहस में शिरकत कर रहे हैं। दूसरी ओर ऐसों की भी कमी नहीं है जो इसे बेमतलब का मुद्दा मानते हैं। इसका परिदृश्य आज जटिल और बदला हुआ है। देश के स्वतंत्र होने के पहले और स्वतंत्र होने के तत्काल बाद और अब लगभग सात दशक की परिपक्वता के करीब पहुँचते-पहुँचते इसे लेकर आज बहुतेरे यह मान कर इस तरह की चर्चा से तटस्थ हो चले हैं कि यह तो कोई सार्थक प्रश्न ही नहीं है। कुछ इसे वैश्विक या भूमंडलीकृत हो रहे आज के समय की जरूरतों के अनुसार समझना चाहते हैं। कुछ इसे केवल स्थानीय दृष्टि से ही देखना चाहते हैं। कुछ इसे सभ्यता और संस्कृति के विमर्श से जोड़ कर देखते हैं। जो भी हो अंतरराष्ट्रीयता के सारे प्रयासों के बावजूद आज भी राज्य या 'नेशन स्टेट' की अवधारणा निर्णायक महत्व रखती है और निकट भविष्य में सीमाविहीन देश जैसी कोई अवधारणा आकार लेती नजर नहीं आती।
आज का सत्य यही है कि देशों की सीमाएँ बाधा (का अधिक) और संपर्क (का कम) का काम कर रही हैं। देश की सीमाओं की रक्षा सबके सामने एक बड़ी चुनौती है। 'देश' और 'राष्ट्र' केवल कोरी भौगोलिक अवधारणाएँ नहीं होतीं। उन इकाइयों की रचना के साथ एक समाज या समुदाय विशेष की आशा-आकांक्षा भी जुड़ी होती है। देश की अवधारणा एक स्वप्न को समर्पित रहती है। आज के तमाम राष्ट्रों के साथ उनके साथ जुड़ी लंबी संघर्ष-गाथा आसानी से देखी जा सकती है जो दूसरे समाजों और समुदायों की साम्राज्यवादी आकांक्षाओं के प्रतिरोध को दर्शाती हैं। शक्तिसंपन्न और आर्थिक रूप से प्रबल देशों की दादागिरी, उनकी सत्ता और शक्ति का जलवा अभी भी बरकरार है। कहने का तात्पर्य यह कि देश की इकाई अभी भी राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बनी हुई है और उसे नकारा नहीं जा सकता।
आज बौद्धिक कवायद में भारत समेत सब कुछ 'कंटेस्टेड' माने जाने का फैशन-सा चल पड़ा है, पर उससे दूर करोड़ों (भारतीय) जनों के तन-मन में भारत जीवित है। आम आदमी जिनसे देश आकार लेता है वह भारत की एक सामाजिक स्मृति भी रखता है।
Explanation:
Bharat harmaara desh h.
Hme iske prti bharatiyata darshani chahiyee.