Hindi, asked by priyanshu47, 1 year ago

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Answered by abhi178
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हमे अपने दैनिक जीवन को सुचारू रुप से चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है , भोजन कुछ नही अप्रत्यक्ष उर्जा का स्रोत है । भोजन यानि उर्जा के बगैर जीवन की कल्पना असंभव है ।

मानव अपने जीवन को सरल और सुलभ बनाने के लिए हमेशा से ही अपने विवेक का उपयोग कर अनगिनत चीजों को खोजा और आविष्कार किया है । बड़े- बड़े गाड़ियाँ , विद्युत , पंखे , टॉर्च, बैटरी बगैरह - बगैरह सभी मानव को सुविधा देते हैं किन्तु भारी मात्रा में प्राकृतिक उर्जा के दोहन के फलस्वरुप । सड़क पर दौड़ती हुई मोटरसाइकिल से लेकर , हवा में उड़ता जहाज तक बगैर ईंधन ( उर्जा) के नही चल सकती है। यों कहें कि हम प्रकृति के बहुत बड़े ऋणि हैं जो उनके द्वारा बनाये गये उर्जा (ईंधन) का उपयोग कर रहे हैं ।

आधुनिक युग ईंधन पर इतने आत्मनिर्भर हो चुके हैं कि ईंधन का उपयोग नही बल्कि उपभोग कर रहे हैं । ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि २१वी शताब्दी के अंत तक हम प्राकृतिक ईंधन ( पेट्रोलियम, कोयला इत्यादि ) से वंचित हो जाएंगे ।
यह एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका समाधान हम मानव जाति को करना चाहिए , क्योंकि इनके उपभोक्ता भी तो हम ही हैं ।

कुछ चीजे को बदलाव से हम प्राकृतिक ईंधन का जीवनकाल बढा सकते हैं ।

सौर्य उर्जा उपयोग को कम करने एवं उनपर निर्भरता को खत्म करने की सबसे अच्छे तकनीक है, वैसे भारत में इसका उपयोग हो रहा जिसके बेहतर परिणाम प्राप्त हो रहे हैं , यह तकनीक उन जगहों पर कारगर साबित हो रहा है जहाँ विद्युत को पहुचाना संभव नही है । जहाँ तक संभव हो हमे इसका उपयोग घरों के सभी यंत्रों { बल्व , पंखा , मोटर इत्यादि} को चलाने के लिए करना चाहिए , इससे बिजली के उपयोग को कम किया सकता है , अर्थात् ईंधन की खपत को कम किया जा सकता है । इसी प्रकार से पवन उर्जा , जल उर्जा { डेम बनाकर प्राप्त किया जाना } अक्षय उर्जा के बेहतर स्रोत हैं जो ईंधन खपत पर 'कमर कस' सकती है

आधुनिक युग की विशाल खोज में नाभिकीय उर्जा सर्वोतम है। हालाकि इस उर्जा की प्राप्ति के लिए रेडियोसक्रिय धातु की आवश्यकता होती है लेकिन धातु की थोड़ी मात्रा विशाल उर्जा का निर्माण करती है , अत: भारत जैसे देशों को इसके उपयोग पर ध्यान देना चाहिए ।

वैसे तो मेरे मायने मे ईंधन खपत यानि ईंधन का अकाल के दोषी हम सभी हैं ।
अगर बाजार से सब्जी लानी हो तो हम मोटरसाइकिल, या फिर कार का उपयोग बेझिचक करते हैं , जबकि हम पैदल भी जा सकते हैं ।कार या मोटरसाइकिल का बेवजह उपयोग से भले ही खुद को अमीर , या फिर शान -शौकत मानते हो , असल मे हम प्रकृति के गुलाम हैं ।
" जरुरत है खुद को बदलने की "
तभी हम ईंधन के दोहन पर लगाम लगा सकते है ।
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