Hindi Essay on “Kisi Yatra ka Varnan
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- दैनिक जीवन के एक निश्चित कार्यक्रम के अनुसार निरन्तर कार्य करते – मनुष्य थक जाता है। दूसरी ओर कार्य करते-करते वह ऊब भी जाता है। तब उसे एक विशेष परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है जिससे वह अपने कार्य करने के लिए पुनः तत्पर हो जान है। इस प्रकार के परिवर्तन से मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य किस प्रकार का परिवर्तन चाहता है, यह उसकी प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। कुछ लोग विशेष प्रकार के ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करते हैं, कुछ लोग अपनी यात्रा में अनेक प्रमुख शहरों की यात्रा को महत्त्व देते हैं तथा। कुछ लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं और धार्मिक स्थानों, मंदिरों की यात्रा भी करते हैं। यात्रा निश्चय ही मनुष्य को आनन्द प्रदान करती है तथा ज्ञानार्जन करने का साधन भी बनती है। क्योंकि यात्रा करते हुए वह सभी कुछ अपनी आंखों से देखता है। प्राकृतिक दृश्य मन को लुभाते हैं, नये स्थान, अपरिचित लोग, बदले हुए वातावरण से उसे प्रसन्नता मिलती है। प्राचीन काल में हमारे देश में तपस्वी लोग कभी भी किसी एक ही स्थान पर अधिक समय के लिए नहीं ठहरते थे। क्योंकि उनका विचार था कि इससे मनुष्य का ज्ञान ही सीमित नहीं होता अपितु वह गतिहीन और शून्य के समान हो जाता है। हमारे विद्यालय में श्री शर्मा जी इस प्रकार के अध्यापक है जो बच्चों के साथ प्रमण करने के लिए सदैव इच्छुक रहते हैं तथा अनेक अवसरों पर वे छात्रों को अनेक स्थानों की यात्रा करवा चुके हैं।
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