Hindi essay on Parivartan sansar ka niyam hai
Answers
इस संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सब कुछ नश्वर और क्षणभंगुर है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो परिवर्तन को और अनित्यता को समझता है, वस्तुत: वही ज्ञानी है। जीव, जगत और ब्रrा को सही तरीके से परिभाषित करने की क्षमता भी ज्ञानी-ध्यानी, ऋषि-मुनियों में ही होती है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में संदेश देते हैं कि इस अनित्य जगत में देह को पाकर मनुष्य को इसे समझते हुए विषय-वासनाओं के दलदल में नहीं फंसना चाहिए।ज्ञानी ही है, जो ऋतुओं के अनुकूल यज्ञ को सफल कर लेता है। ज्ञानी ही है, जो बाधाओं में व्यवधानों में मार्ग ढूंढ़ निकालता है। मनुष्य को पीड़ा तभी होती है, जब उसके जीवन में परमात्मा नहीं होता है। प्रसन्नता और आनंद परमात्मा की उपस्थिति का आभास है। दुनिया के पीछे भागने से बढ़िया है कि हम दुनिया के मालिक परमेश्वर के पीछे भागें, उसकी शरण में स्वयं को उसके श्रीचरणों में समर्पित करें और यह भाव रखें कि यह सब कुछ जो हमें मिला है। वह उसकी कृपा के कारण संभव हो सका है। यदि जीवन में ज्ञान उतर आए, तो छह संपदाएं स्वत: प्राप्त हो जाती हैं। शम, दम, तितिक्षा, उपरति, श्रद्धा और समाधान। शम है- सब तरह की शांति। दम का तात्पर्य इंद्रिय संयम से है। तितिक्षा है- द्वंद्व सहन करना, उपरति है- विषयों के प्रति आसक्ति न होना।श्रद्धा का मतलब है- सत्य से प्रगाढ़ प्रेम। जबकि समाधान है-समाधि, और सत्य का दर्शन। 1 प्रभु से जब भी याचना करें मांगे तो उसकी भक्ति मांगे। पवित्र बुद्धि और सुमति की प्रार्थना करें। वह परमपिता परमेश्वर अपनी कृपा हम पर अवश्य करता है। इस बात पर जीवन में जरूर विचार करें कि हम सत्य को ग्रहण कर रहे हैं या नहीं। असत्य को छोड़ रहे हैं या नहीं। यह भेद भी ज्ञानी ही समझ पाता है। धर्मानुसार अर्थ और काम हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जरा सोचिए, इस सुंदर संसार का निर्माण करने वाला परमात्मा भला कितना सुंदर होगा। संसार के सौंदर्य को परमात्मा की देन मानकर देखते हैं, तो बहुत सी चीजें समझ में आती हैं। परमेश्वर का यह संसार न तो मरता है और न जीर्ण-शीर्ण होता है। बस, परिवर्तन के साथ हमेशा इसमें नई कोपलें फूटती रहती हैं। सर्व कल्याण और सुख प्रदान करने वाला मात्र एक परमेश्वर है। आइए! हम भी अपने हृदय मंदिर को कुछ इस प्रकार सजाएं कि उसका वास सहज हो सके।
परिवर्तन संसार का नियम है
परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। हर घडी हर पल बदल रहा है। यह सृष्टि का चक्र है। इसके साथ ताल- मेल रखने के लिए, हमें समय के साथ निरंतर बदलना चाहिए ,चाहे जीवन में कितने भी उतार -चढाव आये , हमें बस निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए , नदी का पानी अगर बहता ही रहता है तो स्वच्छ निर्मल रहता है , अगर वह पानी बहने के जगह रुक जाये तो वह पानी एक तालाब का रूप ले लेता है और इसी रूकावट के कारण एक वह दिन गंदे पानी में तब्दील हो जाता है। जब सागर में तूफान आता है तो जोर-जोर से लहरें उठती है परंतु कुछ समय बाद शांत हो जाती है और स्थिति सामान्य हो जाती है। पतझड़ में पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत ऋतु में नए पत्ते पेड़ में लाकर उसे हरा-भरा बना देते हैं।
ठीक हमारा जीवन भी समय के साथ परिवर्तित होता रहता है , उस समय की परिस्थिति से अपनी स्थिति का तालमेल रखने के लिए हमें अपने आप में परिवर्तन लाना आवश्यक है, इसलिए हमें परिवर्तन से डरना नहीं चाहिए बल्कि परिवर्तन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए तभी सफलता हासिल होग। महापुरुषों का कथन है कि मनुष्य को परिवर्तन को सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि वह हमेशा कल्याणकारी एवं लाभदायक होता है।अगर जीवन में प्रगति चाहते हो तो परिवर्तन होना स्वाभाविक है उसका हमें स्वीकार करना चाहिए, जैसे हर रात के बाद दिन होना स्वाभाविक है, वैसे परिवर्तन हमारे जीवन में एक स्वर्णिम सवेरा बनकर आता है जो हमारे जीवन में नव- निर्माण का कार्य करता है , " जीवन में आने वाली हर नई - परिस्थिति हमारे लिए वर्तमान में परीक्षा और भविष्य में शिक्षा का कार्य करती है "। वस्तुत: जीवन का दूसरा नाम परिवर्तन है परिवर्तन नहीं तो कुछ नहीं जीवन में।
Hope that helps you
: )