hindi essay on paryatan aur jeevan
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पर्यटन का महत्त्व प्रत्येक देश में स्वीकार किया जा चुका है । पाश्चात्य जगत् के प्रख्यात विचारक मांटेन का कथन है कि पर्यटन के अभाव में कोई व्यक्ति पूर्ण शिक्षित नहीं कहा जा सकता । आधुनिक युग में प्रत्येक शिक्षा-प्रणाली में पर्यटन की योजना अनिवार्य रूप से सन्निविष्ट है ।
आदिकाल से मनुष्य पर्यटन का प्रेमी रहा है । मनुष्य की प्रकृति में पर्यटन का बीज परमपिता ने बोया । मानवीय सभ्यता उसी के प्रस्कुटन का परिणाम है । जैसा कि नाम से स्पष्ट है, पर्यटन का तात्पर्य देश-विदेश में परिभ्रमण है । पर्यटन निरुद्देश्य नहीं होता ।
पर्यटन की प्रेरणा राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक, व्यापारिक आदि अनेक कारणों से प्राप्त हो सकती है । इनके अतिरिक्त मनोरंजन, अनुसंधान, अध्ययन, स्वास्थ्य-लाभ अथवा अन्य व्यक्तिगत कारण भी पर्यटन के मूल में हो सकते हैं । सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए संसार के सभी सभ्य देशों के बीच नागरिकों की यात्रा अब नित्य की दिनचर्या है ।
विद्याध्ययन के लिए एक देश के छात्र दूसरे देश में जाते हैं । ऐसी यात्राओं से व्यक्तिगत उद्देश्यों के साथ-साथ राष्ट्रीय उद्देश्यों की पूर्ति भी होती है । पर्यटन में देश-दर्शन की भावना सर्वोपरि होती है । प्रकृति की विविध मनोहारी छटाओं को चुरा-चुराकर हृदय में रखते जाना; उसकी सुषमा से नेत्र और मन को तृप्त करते जाना; मार्ग में आनेवाले नगरों, भवनों, वन-प्रांतरों आदि की शोभा और ग्रामश्री का आस्वादन करते जाना चाहिए ।
सौभाग्य से समस्या-संकुल इस व्यस्त संसार में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् १९६७ को ‘अंतरराष्ट्रीय पर्यटन वर्ष’ घोषित किया था । संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने ४ नवंबर, १९६६ को यह निर्णय लिया । इस प्रकार प्रथम बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन को बहुत महत्त्व दिया गया ।
हमारे लिए एक और दृष्टि से भी इसका महत्त्व है । इसमें विकासशील देशों में पर्यटन को प्रोत्साहन देने पर विशेष बल दिया गया था । इसलिए पर्यटन को उद्योग के रूप में अपनाने और उसका प्रचार करने का सन् १९६७ में हमें बड़ा सुअवसर प्राप्त हुआ । कारण, भारत बहुत बड़ा देश है और यहाँ पर्यटन के विकास की काफी संभावनाएँ हैं ।
विदेशी पर्यटकों के लिए भारत में अनेक आकर्षण हैं । विगत पंद्रह-सोलह वर्षों में विदेशी पर्यटकों की संख्या में ८० प्रतिशत की वृद्धि हुई है, फिर भी अभी और वृद्धि की संभावना है । परंतु इसमें हमारे सीमित साधन बाधक हैं, जिसके कारण यहाँ पर्यटकों के ठहरने के स्थान, परिवहन, मनोरंजन आदि की सुविधाएँ बहुत अधिक नहीं बढ़ाई जा सकतीं; किंतु संगठित प्रयत्न करके कम-से-कम समय में उसे दूर किया जा सकता है । सरकार की ओर से कोलकाता, मुंबई, वाराणसी, उदयपुर, बंगलौर तथा अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों में होटलों के निर्माण और विस्तार की योजना है ।
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Sania ♡