hindi essay on paryavaran and vikas
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हमें विकास तो करना है, लेकिन विकास का टिकाऊ होना आवश्यक है । इसके लिए जलवायु परिवर्तन और विकास बाध्यताओं से निपटना जरूरी होगा । अगर समय रहते शुरुआत न की गयी तो पृथ्वी और इसके साथ ही हमारी भावी पीढ़ियों का अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा ।
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के उत्तरार्द्ध में आज मनुष्य और पृथ्वी के सहअस्तित्व की संभावना संदिग्ध लगने लगी है । लगता है इस ग्रह को स्वपोषित मनीषा सम्पन्न किरायेदार अपने आवास को अब किसी और के लिए रहने लायक नहीं छोड़ने वाले ।
वर्ष 2007 में पर्यावरण से जुड़े काम के लिए अल गोर और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अध्यक्ष के रूप में आर.के. पचौरी के संगठन को मिला नोबल शांति पुरस्कार दरअसल इस ग्रह के भविष्य से जुड़े सरोकारों के हल ढूंढने के लिए लगाई गयी पुकार है ।
हम जिस राह पर चल रहे हैं, वह पृथ्वी के भविष्य को खतरे में डालेगी । हमने समय रहते राह न बदली, तो हम और हमारी भावी पीढ़ियां भी गहरे संकट से जूझेंगी ।
तरक्की व विकास की बाध्यताओं और पर्यावरण के प्रति सम्मान के बीच अंतर्संबंध स्थापित किये बिना विकास अर्थहीन सिद्ध होगा । टिकाऊ विकास आज एक आकर्षक नारा भर नहीं, ऐतिहासिक आवश्यकता है । पूरी दुनिया में हो रही तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के परिणाम हमारे सामने आने लगे हैं ।
पूर्वी भारत के बडे हिस्सों में अभूतपूर्व बरसात और बाढ़, बढ़ते तापमान और गड़बड़ मौसम और घटता कृषि उत्पादन इसके कुछ लक्षण हैं । हाल ही में गठित जलवायु परिवर्तन परिषद को जटिल घरेलू और वैश्विक मुद्दों से जूझना होगा ।
अब इस बात के पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हैं कि वैश्विक तापमान वृद्धि दीर्घावधि कुदरत की राह कुछ समय बाद होने वाली परिघटना नहीं, बल्कि मनुष्यों की गतिविधियों का परिणाम है । जलवायु और पर्यावरण परिवर्तन के मुद्दों से दो – दो हाथ करने को अब और नहीं टाला जा सकता।
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के उत्तरार्द्ध में आज मनुष्य और पृथ्वी के सहअस्तित्व की संभावना संदिग्ध लगने लगी है । लगता है इस ग्रह को स्वपोषित मनीषा सम्पन्न किरायेदार अपने आवास को अब किसी और के लिए रहने लायक नहीं छोड़ने वाले ।
वर्ष 2007 में पर्यावरण से जुड़े काम के लिए अल गोर और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अध्यक्ष के रूप में आर.के. पचौरी के संगठन को मिला नोबल शांति पुरस्कार दरअसल इस ग्रह के भविष्य से जुड़े सरोकारों के हल ढूंढने के लिए लगाई गयी पुकार है ।
हम जिस राह पर चल रहे हैं, वह पृथ्वी के भविष्य को खतरे में डालेगी । हमने समय रहते राह न बदली, तो हम और हमारी भावी पीढ़ियां भी गहरे संकट से जूझेंगी ।
तरक्की व विकास की बाध्यताओं और पर्यावरण के प्रति सम्मान के बीच अंतर्संबंध स्थापित किये बिना विकास अर्थहीन सिद्ध होगा । टिकाऊ विकास आज एक आकर्षक नारा भर नहीं, ऐतिहासिक आवश्यकता है । पूरी दुनिया में हो रही तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के परिणाम हमारे सामने आने लगे हैं ।
पूर्वी भारत के बडे हिस्सों में अभूतपूर्व बरसात और बाढ़, बढ़ते तापमान और गड़बड़ मौसम और घटता कृषि उत्पादन इसके कुछ लक्षण हैं । हाल ही में गठित जलवायु परिवर्तन परिषद को जटिल घरेलू और वैश्विक मुद्दों से जूझना होगा ।
अब इस बात के पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हैं कि वैश्विक तापमान वृद्धि दीर्घावधि कुदरत की राह कुछ समय बाद होने वाली परिघटना नहीं, बल्कि मनुष्यों की गतिविधियों का परिणाम है । जलवायु और पर्यावरण परिवर्तन के मुद्दों से दो – दो हाथ करने को अब और नहीं टाला जा सकता।
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