hindi essay on uttam aahar and uttam vichar of 200 words
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उत्तम आहार :
आहार सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका व्यक्तित्व निर्माण से घनिष्ठ सम्बन्ध है. आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार. फल, सब्जी, अनाज, बादाम आदि, बीज सहित वनस्पति-आधारित भोजन के प्रयोग को शाकाहार कहते हैं. आजकल शाकाहार का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, यह परिवर्तन जागरुकता के कारण हो रहे हैं. जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं.
हमारी पश्चिमी दुनिया के अनुसार मुख्य रूप से चार प्रकार के शाकाहारी होते हैं. एक लैक्टो-शाकाहारी जिनके आहार में दुग्ध उत्पाद शामिल हैं लेकिन मीट, मछली और अंडे नहीं. एक ओवो शाकाहारी जिनके आहार में अंडे शामिल होते हैं लेकिन मगर मीट, मच्छी और दूग्ध-उत्पाद नहीं खाते. और एक ओवो-लैक्टो-शाकाहारी जिनके आहार में अंडे और दुग्ध उत्पाद दोनों शामिल हैं. एक वेगन अर्थात अतिशुद्ध शाकाहारी जो दूध तो क्या शहद भी नहीं खाते. इस के अनुसार भारत में हम हिन्दू जो शाकाहार में विश्वास रखते हैं लैक्टो-शाकाहारी के अन्तरगत आते हैं. क्योंकि हम शहद, दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करते हैं.
पश्चिमी दुनिया में, 20वीं सदी के दौरान पोषण, नैतिक, और अभी हाल ही में, पर्यावरण और आर्थिक चिंताओं के परिणामस्वरुप शाकाहार की लोकप्रियता बढ़ी. अमेरिकन डाएटिक एसोसिएशन और कनाडा के आहारविदों का कहना है कि जीवन के सभी चरणों में अच्छी तरह से योजनाबद्ध शाकाहारी आहार “स्वास्थ्यप्रद, पर्याप्त पोषक है और कुछ बीमारियों की रोकथाम और इलाज के लिए स्वास्थ्य के फायदे प्रदान करता है”.
मेडिकल साईंस व बडे-बडे डॉक्टर एवं आहार विज्ञानी आज यह मानते हैं कि शाकाहारी आहार में हर प्रकार के तत्व जैसे प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण आदि पायें जाते हैं. शाकाहार में संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल और प्राणी प्रोटीन का स्तर कम होता है, और कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम और विटामिन सी व ई जैसे एंटीऑक्सीडेंट तथा फाइटोकेमिकल्स का स्तर उच्चतर होता है. एक शाकाहारी को ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह टाइप 2, गुर्दे की बीमारी, अस्थि-सुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस), अल्जाइमर जैसे मनोभ्रंश और अन्य बीमारियां कम हुआ करती हैं. शाकाहारियों को मांसाहारियों कि तुलना में बेहतर मूड का पाया गया और शाकाहार जीवन को दीर्धायु, शुद्ध, बलवान एवं स्वस्थ बनाता है.
मांसाहार का उपभोग पशुओं से मनुष्यों में अनेक रोगों के संक्रमण का कारण हो सकता है. साल्मोनेला के मामले में संक्रमित जानवर और मानव बीमारी के बीच संबंध की जानकारी अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है. 1975 में, एक अध्ययन में सुपर मार्केट के गाय के दूध के नमूनों में 75 फीसदी और अंडों के नमूनों में 75 फीसदी ल्यूकेमिया (कैंसर) के वायरस पाए गये. 1985 तक, जांच किये गये अंडों का लगभग 100 फीसदी, या जिन मुर्गियों से वे निकले हैं, में कैंसर के वायरस मिले. मुर्गे-मुर्गियों में बीमारी की दर इतनी अधिक है कि श्रम विभाग ने पोल्ट्री उद्योग को सबसे अधिक खतरनाक व्यवसायों में एक घोषित कर दिया. आज भी समय समय पर ऐसे रोगों की पुष्टि होती है जिनकी वजह मांसाहार को माना जाता है.
हिन्दू धर्म के अधिकांश बड़े पंथों ने शाकाहार को एक आदर्श के रूप में संभाले रखा है. इसके मुख्यतः तीन कारण हैं: पशु-प्राणी के साथ अहिंसा का सिद्धांत; आराध्य देव को केवल “शुद्ध” (शाकाहारी) खाद्य प्रस्तुत करने की नीयत और फिर प्रसाद के रूप में उसे वापस प्राप्त करना; और यह विश्वास कि मांसाहारी भोजन मस्तिष्क तथा आध्यात्मिक विकास के लिए हानिकारक है.
अपनी रुचि और आर्थिक स्थिति के अनुसार पदार्थों का चयन कर शाकाहारी भोजन तैयार किया जा सकता है. मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार सस्ता होने के साथ-साथ स्वादिस्ट, रोगप्रतिरोधक तथा शक्तिप्रद भी होता है. फल सब्जियों तथा कुछ विशेष प्रकार के फाइबर अनेक रोगों को दूर करने में अचूक औषधि का काम करते हैं. जब सभी प्रकार के विटामिन्स तथा पौष्टिक तत्त्व शाकाहार से पूर्ण हो सकती है तो क्यों जीवित प्राणियों की हत्या करके मांसाहार की क्या जरूरत है ? प्रकृति ने कितनी चीजें दी हैं जिन्हें खाकर हम स्वस्थ रह सकते है फिर मांस ही क्यों ? अब तय आपको करना है कि शाकाहार बेहतर है या मांसाहार.
ऎसे युवाओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो मांसाहार को किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. शाकाहार एक सर्वोत्तम आहार है जो मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है. भरपूर पौष्टिक खाना शरीर को ऊर्जा देता है जो मांस से नहीं मिल सकता. शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है. एक संतुलित सामाजिक प्रगति के लिये शाकाहार की अनिवार्यता अपरिहार्य है.
उच्च विचार
सरल जीवन उच्च विचार से पता चलता है कि हमें एक सादा जीवन जीना चाहिए लेकिन साथ ही हमारी सोच भी सीमित नहीं होनी चाहिए। यह तथ्य सही है कि हमें अपनी सोच को केवल रोज़ाना के कामों के इर्द-गिर्द तक ही सीमित नहीं करना चाहिए। हमें अपनी जिन्दगी के साथ-साथ हमारे आसपास के सकारात्मक बदलावों के बारे में भी सोचना चाहिए। यह नीतिवचन किसी भी प्रकार के दिखावे के बिना एक साधारण जीवन जीने के महत्व पर जोर देती है। हमें अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों की जांच करना चाहिए। हालांकि जब सोच और विचारों की बात आती है तो ये बड़े होने चाहिए। हमें केवल स्वयं के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि अपने आस-पास के लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए।