hindi essay pustak ki atmakatha
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Pustak ki Atmakatha in Hindi
मैं पुस्तक हूं जिसे पढ़कर कोई भी मनुष्य विद्वान बनता है। मैं इंसान को अंधकार से उजाले की ओर ले जाने का काम करती हूं। मेरे कारण ही कोई भी मनुष्य सभ्य बन पाता है और अपने राष्ट्र के लिए कुछ कर पाता है। मुझमें लिखा हुआ ज्ञान ही मनुष्य को आज इतना आधुनिक बना पाया है।
छोटे बच्चे अपनी जिंदगी में ज्ञान प्राप्त करने की शुरुआत मुझसे ही करते हैं और समय के साथ साथ वे ज्ञानी होते जाते हैं। बाद में यही बच्चे बड़े होकर अपने राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बनते हैं।
मुझे सिर्फ छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोग पढ़ते हैं क्योंकि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। काफी लोग मुझे सिर्फ शौक के कारण पढ़ते हैं ताकि मैं अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।
वर्तमान में मै एक पुस्तक हूँ | मुझे पाकर मानो मानव ने एक अमर निधि प्राप्त कर ली है | मै उसे सदा ज्ञान – विचारो का दान देती रहती हूँ | मुझे आज ज्ञान – विज्ञान और समझदारी का , आनन्द और मनोरंजन का खजाना माना जाता है | परन्तु आदर – मान की यह स्थिति मुझे एकाएक या सरलता से नही मिल गई है | मेरा यह रूप सृष्ट – मानव की तपस्या और साधना का फल है |
सृष्टि के आदिकाल में तो मेरा सृष्टा बड़ी- बड़ी शिलाओं के उपर चित्रों तथा तस्वीरों के रूप में ही मेरा निर्माण करता था | वह मेरा रूप आज भी शिलाओं पर या कन्दराओ में देखा जा सकता है | लेखन कला की प्रगति के साथ मेरा रूप बदला, फिर मुझे ताड़ व भोज पत्रों पर लिखा जाने लगा | आज भी अजायबघर में मेरा यह रूप देखने को मिल सकता है | कुछ और समय पश्चात् कागज का आविष्कार हुआ तो मेरा निर्माण कागज पर होने लगा | यह कार्य सर्वप्रथम चीन में प्रारम्भ हुआ था | कागज के निर्माण तथा मुद्रण कला की प्रगति ने तो मेरी काय ही पलट दी | फिर तो मै नए- नए रूपों में अपने पाठको के सम्मुख प्रस्तुत होने लगी | मेरा आवरण भी आकर्षक बन गया | मेरी सुरक्षा के लिए मुझ पर सुदृढ़ जिल्द भी चढाई जाने लगी |