Hindi, asked by yousufquadri35, 1 year ago

hindi essays in hindi language diwali

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Answered by anurag59
6
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Answered by 007Boy
7

Answer:

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक-पर्व है। यह हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसके आगे-पीछे कई पर्व मनाए जाते हैं। धनतेरस से इस पर्व का आरंभ होता है, जिस दिन लोग लक्ष्मी, गणेश, बरतन तथा पूजा की सामग्री खरीदते हैं। धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है। धन्वन्तरि वैद्यों के शिरोमणि थे। धनतेरस के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी होती है। इस दिन व्यापक रूप से सफाई की जाती है तथा भगवती लक्ष्मी के आगमन के लिए घर-बाहर काफी सजावट की जाती है। इसे छोटी दीपावली कहने का भी गौरव प्राप्त है। इस दिन घर में आसपास सरसों के तेल के दीये जलाकर रखे जाते हैं तथा दूसरे दिन भगवती लक्ष्मी के आह्वान के लिए स्तुति व पूजन किया जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी के पश्चात् चिर प्रतीक्षित दीपावली का महापर्व आता है।

प्रातःकाल से ही दीपावली के पूजन तथा घरों को सजाने-संवारने का काम शुरू होता है। कुछ लोग दीपावली के दिन रात 12 बजे भी भगवती लक्ष्मी की पूजा करते हैं।

दीपावली के पर्व की शुरुआत कब से हुई इसके विषय में अनेक कथाएं हैं, जिनमें सबसे ज्यादा प्रचलित तथा मानने योग्य कथा यह है कि रावण का वध करने के उपरान्त जब भगवान राम अयोध्या वापस आए थे, तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए घर-बाहर सभी जगह दीपक जलाए थे। दीपक जलाने का रिवाज तभी से चला आ रहा है। इस अवसर पर श्रीराम की पूजा करने का विधान होना चाहिए था, लेकिन आजकल लोग लक्ष्मी, गणेश की पूजा करते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी समृद्धि तथा धन-सम्पत्ति की देवी हैं। भगवान गणेश की भी यही विशेपता है।

दीपावली के त्योहार में जहां अनेक गुण है, वहीं इस त्योहार के कुछ दुर्गुण भी हैं। दीपावली खर्चीला त्योहार है। कुछ लोग कर्ज लेकर भी इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। नए कपड़े पहनते हैं, कार्ड भेजते हैं तथा डटकर मिठाई छानते हैं। नतीजा यह होता है कि यदि त्योहार महीने के बीच या महीने के शुरू में पड़ता है। तो आम नागरिक को पूरा महीना आर्थिक दिक्कतों से काटना पड़ता है। इस प्रकार यह त्योहार आम लोगों के लिए सुखकारी होने की जगह दुःख (ऋण) कारी सिद्ध होता है।

दीपावली पर्व के विषय में एक आम धारणा यह भी है कि इस त्योहार के लिए जुआ खेलने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं तथा वर्ष-भर धन आता रहता है। कितना बड़ा अंधविश्वास लागों के मन में समाया हुआ है। इस अंधविश्वास के कारण लक्ष्मी और गणेश पूजन का यह महापर्व लोगों के आकस्मिक संकट का कारण बन जाता है। कुछ लोग जुए में अपना सर्वस्व एक ही रात में गंवा बैठते हैं।

समय तथा परिस्थितियों के कारण इस पर्व के मनाने में जो तमाम पैसा पटाखों, फुलझड़ियों में बरबाद किया जाता है, वह रोका जाना चाहिए। इससे हमारा पैसा तो आग के सुपुर्द होता ही है, इसके साथ-साथ कभी-कभी ऐसी दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं, जो जीवनभर के लिए व्यक्ति को अपंग बना देती हैं।

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