Hindi explation of poem chandani raat by maithili sharan gupt
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‘मैथिलशरण गुप्त’ हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे, उनकी अप्रतिम रचनाओं के कारण उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से अलंकृत किया गया था।
चाँदनी रात शीर्षक से मैधिलीशरण गुप्त ने कोई कविता नही लिखी है। एक कविता में जिसका शीर्षक है “चारु चन्द्र की चंचल किरणें”
उस कविता की पंक्तियों का भावार्थ प्रस्तुत है...
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
अर्थ — कवि मैथिली शरण गुप्त जी कहते हैं कि सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल में चारों तरफ फैल गई है। धरती और आकाश में चारों तरफ निर्मल एवं स्वच्छ चांदनी बिछी सी गयी है। हरी-हरी घास लहरा रही हैं और उनकी नोकों से यह प्रकट कर रहा है कि इस सुख से वह भी रोमांचित हो रही है। सभी वृक्ष मंद-मंद वायु केझोकों के साथ धीरे-धीरे हिल रहे हैं, ऐसा लग रहा है वह भी इस हर्षोल्लास के वातावरण में मगन होकर झूम रहे हैं।