Hindi, asked by prapro2, 10 months ago


Hindi II
1. आपके विचार से संसार में कौन-कौन सी वस्तुएँ सुंदर हैं? क्या प्रकृति में मौजूद सभी वस्तुओं
| आप सुंदर मानेंगे? लगभग 200 शब्दों में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
2. कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कोई एक कविता लि

Answers

Answered by shishir303
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1.                                संपूर्ण प्रकृति ही सुंदर है

मेरे विचार में पूरी प्रकृति ही सुंदर है। प्रकृति में चारों तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है। प्रकृति में ऐसा कुछ नही है जो सुंदर ना हो। क्या पहाड़ से गिरता झरना सुंदर नहीं लगता? क्या कलकल बहती नदी सुंदर नहीं लगती? क्या बर्फ से ढके ऊंचे पर्वत या अन्य पर्वत सुंदर नहीं लगते? सूरज हमेशा सुंदर दिखाई देता है जब वो उग रहा हो या जब वो डूब रहा हो। रात में चांद चमकता है तो क्या वह सुंदर नहीं दिखायी देता? बल्कि चाँद का उदाहरण तो लोग सुंदरता के पर्याय को रूप में देते हैं। मिट्टी जिसमें सोंधी-सोंधी खुशबू आती है वो हमें अन्न प्रदान करती है, क्या वह सुंदर नहीं है? वह वृक्ष जो हमें फल प्रदान करते हैं, क्या वो सुंदर नही हैं? वह पौधे जो सुंदर-सुंदर फूलों से लदे होते हैं और मन को प्रफुल्लता देते है, वो भी सुंदरता का ही रूप हैं। प्रकृति मे पाये जाने वाला प्रत्येक प्राणी अपने-आप में खास और सुंदर है।

सुंदरता को परखने के नजरिये को हम सीमित करके रखेंगे तो हमें कुछ चीजें ही सुंदर लगेंगी, परन्तु यदि हम अपने नजरिये को विस्तृत करेंगे तो हमें प्रकृति की हर वस्तु सुंदर दिखेगी।

अतः ये कहना उचित नही होगा कि प्रकृति में अमुक वस्तु सुंदर है अमुक वस्तु सुंदर नही है।  

सम्पूर्ण प्रकृति ही सुंदरता से भरी है।

2.  कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का संक्षिप्त जीवन परिचय व उनकी एक कविता

जीवन परिचय —

कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक कविताएं, कहानी, नाटक और बाल साहित्य की रचनाएं की हैं। अनेक पत्रिकाओं के संपादक भी रहे थे। जिनका जिनमें ‘दिनमान’ तथा उस समय की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘पराग’ शामिल है।  

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर 1937 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में हुआ था। उनके पिता नाम श्री विश्वेश्वर दयाल सक्सेना था। उनकी रुचि लेखन और पत्रकारिता में थी। इस कारण उनमें बचपन से ही लेखन की प्रवृत्ति जाग उठी। वह सन 1948 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का बचपन शुरू में तो बस्ती में बीत पर बाद में वो अपने आगे के अध्ययन के लिए अपनी मां के साथ वाराणसी चले गए। उन्होंने 1943 में वाराणसी के कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा  उत्तीर्ण की। आर्थिक विपन्नता के कारण उन्हे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। वह वारणसी के एक कालेज में   नौकरी करने लगे। बाद में कुछ अलग कर दिखाने का चाह में वो इलाहाबाद पहुंच चले गये। उन्होंने इलाहाबाद से ही बीए और 1949 में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की।

वो आकाशवाणी से भी जुडे़े रहे। 1964 में ‘दिनमान’ पत्रिका से उपसंपादक के तौर पर जुड़े और 1982 बाल पत्रिक ‘पराग’ के संपादक बने। जिससे वो मृत्युपर्यंत जुड़े रहे। सन- 1983 में उनकी आकस्मिक मृत्यु ने हिंदी साहित्य जगत का ये अनमोल रत्न हमसे छीन लिया।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अनेक रचनाएँ की जिनमें प्रमुख हैं..काव्य-संग्रह : काठ की घाटियाँ, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, कविताएँ १, कविताएँ २, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग, उपन्यास : उड़े हुए रंग, लघु उपन्यास : सोया हुआ जल, पागल कुत्तों का मसीहा, कहानी संग्रह : अंधेरे पर अंधेरा, नाटक : बकरी, बाल साहित्य : भों भों खों खों, लाख की नाक, बतूता का जूता, महंगू की टाई, यात्रा वृत्तांत : कुछ रंग कुछ गंध, संपादन : शमशेर, नेपाली कविताएँ आदि।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक प्रमुख कविता...

मेघ आये

मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के ।

आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली  

दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए

आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए

बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके ।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की

‘बरस बाद सुधि लीन्ही’

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की

हरसाया ताल लाया पानी परात भर के ।

क्षितिज अटारी गदराई दामिनि दमकी

‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’

बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके

मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के ।

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