hindi kahani lekhan for 9th
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एक दिन एक बूढ़ा लकड़हारा जंगल में लकड़ियाँ काट रहा था। लकड़ियाँ काटते-काटते वह बड़बड़ाने लगा, “मैं दिनों-दिन बूढ़ा होता जा रहा हूँ, इसलिए ज्यादा दिन तक यह कठिन काम नहीं कर पाऊंगा।
मेरी टांगों और बाँहों में हर समय दर्द होता रहता है। मैं और अधिक जीना नहीं चाहता। अब मैं मर जाना चाहता हूँ।” यह कहते ही उसने अपनी कुल्हाड़ी एक ओर फेंक दी।
कुल्हाड़ी फेंकते ही तेज बिजली कड़की और यमराज उसके सामने आकर खड़े हो गए और कहा, “मैं तुम्हें अपने साथ ले जाने आया हूँ।”
यमराज को अपने सामने देखकर लकड़हारा डर के मारे कांपते हुए बोला, “माफ करना, मैं अभी मरना नहीं चाहता। आप कृप्या मुझे मेरी कुल्हाड़ी उठाकर दे दें ताकि मैं लकड़ियाँ काट सकूँ।”..
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जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ और कुछ सरकंडे साथ-साथ खड़े थे। एक दिन तेज हवा के झोंके से एक सरकंडा पूरी तरह नीचे झुक गया। यह देखकर बरगद बड़े घमंड से बोला,
“तुमने अपनी हालत देखी है? हवा के झोंके के सामने खड़े भी नहीं रह सकते। मुझे देखो, मैं हमेशा तनकर खड़ा रहता हूँ, चाहे कितनी भी तेज हवा क्यों न चले।” एक दिन बहुत तेज तूफान आया,
जिससे छोटा-सा सरकंडे का पौधा बुरी तरह झुक गया। उसे देखकर एक बार फिर पेड़ हँसते हुए बोला, “देखा, तूफान भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सका। मैं अब भी तनकर खड़ा हूँ।” तभी जोर की आंधी चलने लगी।
सैकड़ों पेड़ टूटकर गिर गए और धमाके के साथ बरगद का पेड़ भी उखड़कर धरती पर आ गिरा। आज सरकंडे का पौधा बोल, “दिया, अपने घमंड का फल।
हमेशा तनकर रहते हो और हवा के झोंके को रास्ता नहीं देते, जबकि मैं कमजोर और छोटा हूँ, इसलिए हवा के झोंके को झुककर रास्ता दे देता हूँ। यही कारण है कि मैं इस आंधी-तूफान में भी खड़ा हूँ, जबकि तुम जड़ से उखड़ गए हो।”