Hindi kavita on ( तपती रेत )
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अब जो बिछडे हैं, तो बिछडने की शिकायत कैसी ।
मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।
जलाए हैं खुद ने दीप जो राह में तूफानों के
तो मांगे फिर हवाओं से बचने की रियायत कैसी ।।
फैसले रहे फासलों के हम दोनों के गर
तो इन्तकाम कैसा और दरमियां सियासत कैसी ।।
ना उतावले हो सुर्ख पत्ते टूटने को साख से
तो क्या तूफान, फिर आंधियो की हिमाकत कैसी ।।
वीरां हुई कहानी जो सपनों की तेरी मेरी
उजडी पड़ी है अब तलक जर्जर इमारत जैसी ।।
अब जो बिछडे हैं, तो बिछडने की शिकायत कैसी ।
मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।
2. शमसान
मंजर मंजर तुमको गाया
फिर खुद से अंजान हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
तुम बिन ये एकाकी जीवन
मौत की एक इकाई है ।
जनम जनम का बंधन है ये
या जन्मों जन्मों की खाई है ।
धड़कन सान्सें तुझको पुकारें
और हम तेरे नाम हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
तेरी दुनियां बसाकर मन ये
मीरा सा बैरागी है ।
तुझमें खोकर, तुझसा होकर
मन खुद से ही बागी है ।
मिलन को हम राधा सा रोए
विरह में हम भी श्याम हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।