hindi language nibandh on avismarniya yatra
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उमस भरी गर्मीं और रोज गाड़ियों के ट्रेफिक से दूर मुझे लगभग 15 दिन असम और मेघालय घूमने का मौका मिला. असम में गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, तिनसुखिया, समेत अन्य जिलों में जाने का अवसर मिला. इसके आलावा शिलोंग, चेरापूंजी तथा मोसिनराम त्रिसाद भी गया. रात को एक खासी परिवार में रुकने का मौका भी मिला. पूर्वोत्तर भारत में ये मेरी पहली यात्रा थी. मैंने यहाँ की राजनातिक, आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक स्थिति को जानना चाहा. यहीं पर पहली हेलिकॉप्टर यात्रा का मौका मिला. इरादा तो सेवन सिस्टर घुमने का था, लेकिन वापिस दिल्ली लोटना है इसलिए नहीं हो पायेगा.
पूर्वोत्तर प्राकृतिक संपदाओं से युक्त राज्य है. यहाँ के बादल, बारिश, पहाड़, नदी, तालाब के किनारे, लोगों को सदा आकर्षित करते रहे हैं. कदम-कदम पर नारियल के पेड़ों की छाँव मन को मदमस्त करती है. 70% प्रतिशत आबादी अभी भी खेती पर निर्भर करती है. कुछ जगहों पर खेती के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है लेकिन अधिकतर आबादी अभी भी पारंपरिक तरीके से ही खेती कर रही है. इन राज्यों की सबसे बड़ी समस्या यहाँ की गरीबी, भ्रष्टाचार, तथा यातायात है. गरीबी के कारण यहाँ की जनता को आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति नहीं हो पाती है. कृषि में पर्याप्त वृद्धि करके यहाँ के लोगों को रोजगार युक्त किया जा सकता है.
अधिकतर आबादी पहाड़ों या गावों में निवास करती है. यातायात व्यवस्था अन्य राज्यों से काफी पिछड़ी है. ट्रेफिक का हाल भी बहुत खराब है. लेकिन यात्री किराया अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत ज्यादा है. जहाँ सामान्यतः 1 घंटा लगना चाहिये वहाँ 3-3 घंटे लगते है. निश्चित रूप से रोड की व्यवस्था अच्छी होने से यहाँ पर विकास की गति भी बढ़ेगी.
सुबह सुबह चिड़ियों की चहक और मन भावक पहाड़ से अंतर्मन में शांति के वातावरण का उठना स्वाभाविक था. आधुनिकता की बेरहम आंधी ने यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर दिया है. गाँवो की बेशकीमती पहचान धीरे-धीरे मिटती जा रही है. गांवों की सांस्कृतिक पहचान धीरे धीरे कुछ लोगों तक सिमटने लगा है. आम आदमी दिन रात मेहनत करके भी जीवन की मूलभूत आवश्यकता को नहीं प्राप्त कर पा रहा है. लोग बताते हैं कि एक समय जब यहाँ सदा घुमड़ते हुए काले बादल छाये रहते थे. लेकिन आज पहाड़ों में भी धुल भरी आंधी चलने लग गई है.
Hope you like it.
उमस भरी गर्मीं और रोज गाड़ियों के ट्रेफिक से दूर मुझे लगभग 15 दिन असम और मेघालय घूमने का मौका मिला. असम में गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, तिनसुखिया, समेत अन्य जिलों में जाने का अवसर मिला. इसके आलावा शिलोंग, चेरापूंजी तथा मोसिनराम त्रिसाद भी गया. रात को एक खासी परिवार में रुकने का मौका भी मिला. पूर्वोत्तर भारत में ये मेरी पहली यात्रा थी. मैंने यहाँ की राजनातिक, आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक स्थिति को जानना चाहा. यहीं पर पहली हेलिकॉप्टर यात्रा का मौका मिला. इरादा तो सेवन सिस्टर घुमने का था, लेकिन वापिस दिल्ली लोटना है इसलिए नहीं हो पायेगा.
पूर्वोत्तर प्राकृतिक संपदाओं से युक्त राज्य है. यहाँ के बादल, बारिश, पहाड़, नदी, तालाब के किनारे, लोगों को सदा आकर्षित करते रहे हैं. कदम-कदम पर नारियल के पेड़ों की छाँव मन को मदमस्त करती है. 70% प्रतिशत आबादी अभी भी खेती पर निर्भर करती है. कुछ जगहों पर खेती के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है लेकिन अधिकतर आबादी अभी भी पारंपरिक तरीके से ही खेती कर रही है. इन राज्यों की सबसे बड़ी समस्या यहाँ की गरीबी, भ्रष्टाचार, तथा यातायात है. गरीबी के कारण यहाँ की जनता को आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति नहीं हो पाती है. कृषि में पर्याप्त वृद्धि करके यहाँ के लोगों को रोजगार युक्त किया जा सकता है.
अधिकतर आबादी पहाड़ों या गावों में निवास करती है. यातायात व्यवस्था अन्य राज्यों से काफी पिछड़ी है. ट्रेफिक का हाल भी बहुत खराब है. लेकिन यात्री किराया अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत ज्यादा है. जहाँ सामान्यतः 1 घंटा लगना चाहिये वहाँ 3-3 घंटे लगते है. निश्चित रूप से रोड की व्यवस्था अच्छी होने से यहाँ पर विकास की गति भी बढ़ेगी.
सुबह सुबह चिड़ियों की चहक और मन भावक पहाड़ से अंतर्मन में शांति के वातावरण का उठना स्वाभाविक था. आधुनिकता की बेरहम आंधी ने यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर दिया है. गाँवो की बेशकीमती पहचान धीरे-धीरे मिटती जा रही है. गांवों की सांस्कृतिक पहचान धीरे धीरे कुछ लोगों तक सिमटने लगा है. आम आदमी दिन रात मेहनत करके भी जीवन की मूलभूत आवश्यकता को नहीं प्राप्त कर पा रहा है. लोग बताते हैं कि एक समय जब यहाँ सदा घुमड़ते हुए काले बादल छाये रहते थे. लेकिन आज पहाड़ों में भी धुल भरी आंधी चलने लग गई है.
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