Hindi, asked by sunilmeenajpr1263, 11 months ago

Hindi meaning of chapter सूरदास के पद


Meghabawari16: Which class 9th 10th or 11th
mngaur2: 10th

Answers

Answered by mngaur2
16

1)

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।

पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।

प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव (श्री कृष्ण के सखा) से वयंग्य करते हुए कह रहीं है की तुम बड़े भाग्यवान हो जो तुम अभी तक कृष्ण के प्रेम के चक्कर में नहीं पड़े। गोपियों के अनुसार उद्धव उस कमल के पत्ते के सामान है जो हमेशा जल में रहकर भी उसमे डूबता नहीं है और न ही उसके दाग धब्बो को खुद पर आने देता है। क्युकी उद्धव कृष्ण के सखा हो कर भी उनके प्रेम के जाल में नहीं पड़े। गोपियों में फिर उद्धव की तुलना किसी पात्र में रखे हुए जल में उपस्थित एक तेल के बून्द से की है जो निरंतर जल में रहकर भी उस जल से खुद को अलग रखता है। और यही कारण है की गोपियाँ उद्धव को भाग्यशाली समझती हैं जबकि वें खुद को अभागिन अबला नारी समझती हैं क्युकीं वो बुरी तरह कृष्ण के प्रेम में पड़ चुकी हैं। उनके अनुसार श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उद्धव ने कृष्ण के प्रेम रूपी दरिया में कभी पांव नहीं रखा और न ही कभी उनके रूप सौंदर्य का दर्शन किया। जबकि गोपियाँ कृष्ण के प्रेम में इस तरह पड़ चुकी है मानो जैसे गुड़ में चींटियाँ लिपटी हो।

Answered by rishika79
11

Answer:

प्रस्तुत पद में गोपियों ने उदधव के ज्ञान-मार्ग और योग-साधना को नकारते हुए उनकी प्रेम-संबंधी उदासीनता को लक्ष्य कर व्यंग्य किया है साथ ही भक्ति-मार्ग में अपनी आस्था व्यक्त करते हुए कहा है- हे उद्धव जी! आप बड़े भाग्यशाली हैं जो प्रेम के बंधन में नहीं बंधे और न आपके मन में किसी के प्रति कोई अनुराग जगा। जिस प्रकार जल में रहनेवाले कमल के पत्ते पर एक भी बूँद नहीं ठहरती,जिस प्रकार तेल की गगरी को जल में भिगोने पर उस पानी की एक भी बूँद नहीं ठहर पाती,ठीक उसी प्रकार आप श्री कृष्ण रूपी प्रेम की नदी के साथ रहते हुए भी उसमें स्नान करने की बात तो दूर आप पर तो श्रीकृष्ण-प्रेम की एक छींट भी नहीं पड़ी। अत: आप भाग्यशाली नहीं हैं क्योंकि हम तो श्रीकृष्ण के प्रेम की नदी में डूबती-उतराती रहती हैं। हे उद्धव जी! हमारी दशा तो उस चींटी के समान है जो गुड़ के प्रति आकर्षित होकर वहाँ जाती और वहीं पर चिपक जाती है और चाहकर भि अपने को अलग नहीं कर पाती और अपने अंतिम साँस तक बस वहीं चिपके रहती है/

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