hindi mein chhand kise kehte hain...please explain with types (in English)
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छंद अक्षरों की संख्या, कर्म, मात्रा, गणना, यति और गति इन सब से संबंध कुछ विशिष्ट नियम उनसे नियमित जो प्रघटना होती है. वह छंद कहलाती है. यह तो है छंद की परिभाषा जो की बहुत ही कठिन और मुश्किल शब्दों में है. इसको समझ पाना लगभग नामुमकिन है. क्योंकि यह अगर पूरी और विस्तार से नहीं समझी जाएगी तो आपको बिल्कुल भी समझ में नहीं आएगी. तो हम आपको थोड़ा आसान भाषा में समझाएंगे जैसे हमने आपको अलंकार में बताया था कि कि जो काव्य जो है. उसको अलंकार सुंदर साफ सुथरा बनाता है. उसी प्रकार कुछ नियम होते हैं. जैसे कोई पद्यांश है.
या काव्य है. उसमें कितने शब्द होंगे या इसमें कौन से अक्षर होंगे दीर्घ होगे या हर्ष हो होगे और जब हम प्रघटना को पढ़ते हैं. तो लगातार नहीं पढ़ते हैं. उसको कहीं पर विराम देते हैं. या उसको ताल के साथ पढ़ते हैं. और यही सभी नियम जैसे पद्यांश में मात्राएं कितनी है जो उनका कर्म कौन सी चीज पहले आएगी कौन सी बाद में आएगी और इन सभी को मिलाकर के जो पर प्रघटना होती है. उन सभी नियमों को मिलाकर के छंद बनता हैं.अब आपको समझ में आ गया होगा कि छंद क्या होते हैं. यानी पद्यांश में जो शब्दों का क्रम होता है. उनकी मात्रा होती है. गणना होती है. यति या गति होती है. उनको ही छंद कहा जाता है.यति गति गणना मात्रा कर्म यह सभी छंद के नियम होते हैं.
छंद के भेद
छंद के 4 भाग होते हैं. प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ भाग होते है. जैसे की आप सभी जानते हैं. कि पहली और तीसरी संख्या विषम होती है. और दूसरी और चौथी संख्या कम होती है. तो बिल्कुल इसी की तरह ही छंद के दो भाग हैं. पहला और तीसरा जो भाग है. वह विषम होता है. और दूसरा और चौथा भाग छम होता है.
मात्रा और वर्ण
किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं ‘मात्राएँ’ दो प्रकार की होती हैं लघु और गुरु, मात्रा और वर्ण का मतलब होता है. कि मात्रिक छंद में मात्राओं को गिना जाता है. और वर्णिक छंद में वर्णों को गिना जाता है. यह तो बिल्कुल आसानी से ही याद हो जाएगा क्योंकि इसमें आप इनके नाम से ही समझ जाएंगे कि मात्रिक का मतलब मात्राओं की गिनती और वर्णिक का मतलब वर्णों की गिनती लेकिन इसमें भी आपको कुछ बातें याद रखनी होती हैं. जैसे ह्स्व वर्ण एक मात्रा गिनी जाती है. जबकि दीर्घ वर्ण में दो मात्राएं गिनी जाती हैं.
दीर्घ वर्ण में हर्ष वर्ण की तुलना में बोलने में हमेशा 2 गुना समय लगता है. यह भी आप बिल्कुल आसानी से ही समझ जाएंगे. कि दीर्घ वर्ण बड़ा होता है और हास्य छोटा होता है. तो बड़ी चीज़ होगी उसमें ज्यादा समय हमेशा लगता है. उदाहरण के लिए जैसे आप किसी भी चीज का नाम लेते हैं. मान लो अगर आप राम शब्द बोलते हैं. तो राम शब्द में कम समय लगेगा क्योंकि इसमें सिर्फ एक ही मात्रा है. और यदि आप सीता बोलते हैं. तो सीता में दो मात्रा आती है. तो इसमें ज्यादा समय लगेगा यानि सीता दीर्घ है. और ह्स्व वर्ण है.
लघु तथा गुरु
लघु और गुरु छंद का तीसरा चरण होते हैं तो अब हम आपको बताएंगे लघु और गुरु क्या होते हैं.इनमें दोनों प्रकार के वनों में भेद होते हैं. इसमें लघु को भी और गुरु दोनों को अलग अलग चिन्ह दिए गए है. जैसे लघु को सीधे डंडे ( | ) का विराम दिया गया है और सीधे डंडे को लघु वर्णों के लिए प्रयोग में लिया जाता है या इस्तेमाल किया जाता है. गुरु वर्णों के लिए विराम S दिया है. और S की आकृति होती है. उसको हम गुरु वर्णों के लिए इस्तेमाल करते हैं. लघु वर्ण और वर्ण क्या होते हैं.
लघु वर्ण – लघु वर्णों उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ और इसके साथ जीने अक्षरों के ऊपर चांद बिंदु लगता है उनको भी लघु वर्ण कहा जाता है.
गुरु वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘गुरू वर्ण’ माना जाता है. इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है. इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है. गुरु वर्णों जैसे. आ, ऊ, ई,ए,ऐ,ऋ,औ गुरु वर्णों में आते हैं. और इसके अलावा इसमें आपको एक चीज और याद रखनी है. यदि संयुक्त वर्ण से पहले अगर कोई लघु वर्ण भी हो तो वह भी गुरु वर्ण माना जाएगा.
संख्या और कर्म
छंद का चौथा चरण है. जैसे किसके नाम से है आपको पता चल रहा है. जो भी वर्णों की मात्रा है उनकी जो संख्या है. उनकी गणना वह संख्या कहलाएगी. यानी उसमें कितने ह्स्व वर्ण हैं. कितने दीर्घ वर्ण हैं. अब कर्म की बात करते हैं. कर्म उससे कहते हैं.जिससे यह पता चलता है. कि लघु या गुरु वर्ण कौन सी जगह पर आएगे कौन से स्थान पर आएंगे. या आगे आएंगे. पीछे आएंगे यानी कि लघु और गुरु वर्णों का सथान कर्म कहलाता है. वर्णों के स्थान को कर्म कहा जाता है. तो अब आपको पता चल गया होगा की वर्ण क्या हो संख्या क्या होती है और कर्म क्या होते हैं.