Hindi mein jai Shankar prasaad ka jeevan parichaya padein aur kantasth keejiye.
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हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि लेखक नाटक का उपन्यास कार एवं कथाकार जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक संभ्रांत वैश्य परिवार में सन में हुआ था
हिंदी संस्कृत फारसी और उर्दू भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे
अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी और चंद्र गुप्त इनकी प्रमुख नाट्य रचनाएं हैं
कंकाल, तितली, आदि इन के प्रसिद्ध उपन्यास है कामायनी,आंसू, लहर, झरना आदि इनकी सुप्रसिद्ध काव्य कृतियां है
सन में इनकी मृत्यु हो गई
अपने छोटे से जीवन में प्रसाद जी ने अपनी रचना से हिंदी साहित्य का एक अत्यधिक संवर्धन किया
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जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० (माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि.) को गुरुवार के दिन काशी के सरायगोवर्धन में हुआ था। इनके पितामह शिवरतन साहू वाराणसी के अत्यन्त प्रतिष्ठित नागरिक थे और एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात थे। उनकी दानशीलता सर्वविदित थी और उनके यहाँ विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान होता था। जयशंकर प्रसाद के पिता देवीप्रसाद साहू ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा का पालन किया। इनके परिवार की गणना वाराणसी के अतिशय समृद्ध घरानों में थी और धन-वैभव का कोई अभाव न था।
जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) का कुटुम्ब शिव का उपासक था। इनके माता-पिता ने इनके जन्म के लिए भगवान शिव से बड़ी प्रार्थना की थी। झारखण्ड के वैद्यनाथ धाम के से लेकर उज्जयिनी के महाकाल की आराधना के फलस्वरूप उनके यहाँ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी. बचपन में जयशंकर प्रसाद को ‘झारखण्डी’ कहकर पुकारा जाता था और इनका नामकरण संस्कार भी वैद्यनाथ धाम में ही हुआ।
शिक्षा
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा घर पर ही आरम्भ हुई। संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी, और उर्दू के लिए शिक्षक नियुक्त थे। इनमें रसमय सिद्ध प्रमुख थे। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों के लिए दीनबन्धु ब्रह्मचारी शिक्षक थे। कुछ समय के बाद स्थानीय क्वीन्स कॉलेज में जयशंकर प्रसाद का नाम लिखा दिया गया, पर यहाँ पर वे आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके। जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) एक अध्यवसायी व्यक्ति थे और नियमित रूप से अध्ययन करते थे।
पारिवारिक विपत्तियाँ
जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) के पितामह (बाबा) बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद ‘हर हर महादेव’ से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था.
जब जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) की उम्र मात्र 12 वर्ष की थी, तभी उनके पिता का देहान्त हो गया। इसी के बाद परिवार में गृहक्लेश आरम्भ हुआ और पैतृक व्यवसाय को इतनी क्षति पहुँची कि वही ‘सुँघनीसाहु का परिवार, जो वैभव में लोटता था, ऋण के भार से दब गया। पिता की मृत्यु के दो-तीन वर्षों के भीतर ही प्रसाद की माता का भी देहान्त हो गया और सबसे दुर्भाग्य का दिन तब आया, जब उनके ज्येष्ठ भ्राता शम्भूरतन चल बसे. मात्र सत्रह वर्ष की अवस्था में ही प्रसाद को एक भारी उत्तरदायित्व सम्भालना पड़ा।
किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही जयशंकर प्रसाद पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया।: